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Jwalamukhi par (ज्वालामुखी पर)

By: Contributor(s): Material type: TextTextPublication details: Kolkata Pratishruti Prakashan 2019Description: 280 pISBN:
  • 9789384012076
Subject(s): DDC classification:
  • 891.433 KAT
Summary: ज्वालामुखी पर उपन्यास जीवन के ताप से रची-पगी श्रमशील लोगों की कथा है, जिसमें वर्ग-संघर्ष के समानांतर लेखकीय आत्मसंघर्ष को भी समानुपातिक महत्व मिला है। आजादी की लड़ाई से प्राप्त उच्चतर मूल्यों और स्वप्न के क्षरण के जहाँ इसमें साक्ष्य हैं तो बेहतर समाज के निर्माण का संकल्प भी। कथा में आदर्श और यथार्थ का बेहतर समन्वय है— कुछ भी यांत्रिक, कृत्रिम या प्रचारात्मक नहीं। रचनाकार की सिद्ध कलम ने सूक्ष्म चरित्रांकन, कथावस्तु के उद्देश्यपरक संयोजन, भाषा और शैलीगत अनूठेपन से इस उपन्यास को ऐतिहासिक बना दिया है। स्वातंत्र्योत्तर काल की इस रचना (1951) में आजादी के ठीक बाद के तीन-चार वर्ष का समयकाल, जाति-धर्म के द्वंद्व, राजनीतिक दलों की स्पर्धा-अराजकता, पूंजीपति और श्रमिक वर्ग का संघर्ष अपनी संपूर्ण प्रभान्विति में मौजूद है। वर्ग-संघर्ष की मुख्य धुरी में दलित और ग्रामीण जनों के जीवन-संघर्ष को अन्य आनुषांगिक चरित्रों के साथ विन्यस्त कर लेखक ने कथा को अपेक्षित गति दे दी है। इस उपन्यास में संघर्ष ही नहीं, प्रणय के तंतु भी सहज-सुंदर शैली और प्रकृति की रंजकता के साथ बुने गए हैं। कथा नायक चंद्रण्णा के व्यक्तित्व की छटा अपूर्व है। समतामूलक समाज का निर्माण और शोषण चक्र से मुक्ति ज्वालामुखी पर उपन्यास का मुख्य थीम है जिसे प्रेषित करने में लेखक बसवराज कट्टीमनी पूर्णतः सफल हैं। कन्नड़ भाषा के प्रेमचंद के रूप में ख्यात बसवराज कट्टीमनी के इस उपन्यास को संपूर्ण भारतीय साहित्य के परिप्रेक्ष्य में रखकर देखा जाना चाहिए। संभव है, यह उपन्यास वर्ग-संघर्ष की पृष्ठभूमि का कन्नड़ ही नहीं, भारतीय भाषा का पहला उपन्यास हो। (https://pratishruti.in/products/jwalamukhi-par-by-basavraj-kattimani-)
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Book Book Indian Institute of Management LRC General Stacks Hindi Book 891.433 KAT (Browse shelf(Opens below)) 1 Available 008623

ज्वालामुखी पर उपन्यास जीवन के ताप से रची-पगी श्रमशील लोगों की कथा है, जिसमें वर्ग-संघर्ष के समानांतर लेखकीय आत्मसंघर्ष को भी समानुपातिक महत्व मिला है। आजादी की लड़ाई से प्राप्त उच्चतर मूल्यों और स्वप्न के क्षरण के जहाँ इसमें साक्ष्य हैं तो बेहतर समाज के निर्माण का संकल्प भी। कथा में आदर्श और यथार्थ का बेहतर समन्वय है— कुछ भी यांत्रिक, कृत्रिम या प्रचारात्मक नहीं। रचनाकार की सिद्ध कलम ने सूक्ष्म चरित्रांकन, कथावस्तु के उद्देश्यपरक संयोजन, भाषा और शैलीगत अनूठेपन से इस उपन्यास को ऐतिहासिक बना दिया है।

स्वातंत्र्योत्तर काल की इस रचना (1951) में आजादी के ठीक बाद के तीन-चार वर्ष का समयकाल, जाति-धर्म के द्वंद्व, राजनीतिक दलों की स्पर्धा-अराजकता, पूंजीपति और श्रमिक वर्ग का संघर्ष अपनी संपूर्ण प्रभान्विति में मौजूद है। वर्ग-संघर्ष की मुख्य धुरी में दलित और ग्रामीण जनों के जीवन-संघर्ष को अन्य आनुषांगिक चरित्रों के साथ विन्यस्त कर लेखक ने कथा को अपेक्षित गति दे दी है। इस उपन्यास में संघर्ष ही नहीं, प्रणय के तंतु भी सहज-सुंदर शैली और प्रकृति की रंजकता के साथ बुने गए हैं। कथा नायक चंद्रण्णा के व्यक्तित्व की छटा अपूर्व है। समतामूलक समाज का निर्माण और शोषण चक्र से मुक्ति ज्वालामुखी पर उपन्यास का मुख्य थीम है जिसे प्रेषित करने में लेखक बसवराज कट्टीमनी पूर्णतः सफल हैं।

कन्नड़ भाषा के प्रेमचंद के रूप में ख्यात बसवराज कट्टीमनी के इस उपन्यास को संपूर्ण भारतीय साहित्य के परिप्रेक्ष्य में रखकर देखा जाना चाहिए। संभव है, यह उपन्यास वर्ग-संघर्ष की पृष्ठभूमि का कन्नड़ ही नहीं, भारतीय भाषा का पहला उपन्यास हो।

(https://pratishruti.in/products/jwalamukhi-par-by-basavraj-kattimani-)

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