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Bharatiya itihas-drishti aur Marxwadi lekhan (भारतीय इतिहास-दृष्टि और मार्क्सवादी लेखन)

By: Material type: TextTextPublication details: Kolkata Pratishruti Prakashan 2019Description: 224 pISBN:
  • 9789383772872
Subject(s): DDC classification:
  • 891.434 SHA
Summary: इतिहास के प्रति हिन्दू समाज की समझ पर अनेक भ्रम फैले रहे हैं। विशेषतः यह, कि हिन्दुओं में कोई इतिहास-बोध नहीं है। विदेशियों के अतिरिक्त, अब पश्चिमी शिक्षा से ग्रस्त अधिकांश हिन्दू भी इस भ्रामक धारणा के शिकार हैं। स्वतंत्र भारत में यह भ्रम फैलाने में वामपंथी प्रचारकों का बहुत बड़ा हाथ रहा है। बल्कि, इसी को आधार बनाकर उन्होंने भारतीय इतिहास, विशेषतः यहाँ इस्लामी आक्रमणों के बाद के इतिहास को मनमाने तौर पर विकृत भी किया है। उनके प्रभाव में हिन्दी साहित्य के अध्ययन-अध्यापन को भी भारी हानि पहुँचाई गई है। यह पुस्तक इन्हीं तीन बिन्दुओं का एक संक्षिप्त आकलन है— (1) हिन्दू अथवा भारतीय इतिहास-बोध, (2) कार्ल मार्क्स और विविध मार्क्सवादियों द्वारा भारतीय इतिहास का विकृतिकरण, तथा (3) समकालीन हिन्दी साहित्य लेखन-चिन्तन पर इसका हानिकर प्रभाव। इन तीनों बिन्दुओं का आकलन क्रमशः कवि-चिंतक सच्चिदानन्द वात्स्यायन अज्ञेय’, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (नई दिल्ली) के प्रमुख मार्क्सवादी इतिहासकारगण, तथा मार्क्सवादी हिन्दी समीक्षक डॉ. रामविलास शर्मा के लेखन के आधार पर किया गया है। इस प्रमाणिक आकलन में वे सभी मुख्य बातें शामिल हैं, जिनसे भारतीय इतिहास-विमर्श ही नहीं, बल्कि राजनीतिक और साहित्यिक विमर्श भी अत्यंत दुष्प्रभावित रहा है। लेखक ने सभी विचारों, तथ्यों और दलीलों को मूल संदर्भों के साथ रखकर अपना विश्लेषण किया है। उसका निष्कर्ष है कि स्वतंत्र भारत में मार्क्सवादी प्रचारकों ने इतिहास एवं साहित्य शिक्षण के साथ-साथ सामान्य विचार-विमर्श को भी भारी पैमाने पर हानि पहुँचाई है। यह विश्लेषण ऐसी प्रमाणिकता से किया गया है कि कोई भी पाठक, प्राध्यापक या आलोचक स्वयं सभी बिन्दुओं की परख कर सकते हैं। साथ ही, चाहें तो और भी विस्तृत अध्ययन की ओर बढ़ सकते हैं। अतः सामान्य सुधी पाठकों से लेकर इतिहास व साहित्य के जागरूक विद्यार्थियों के लिए यह एक अवश्य-पठनीय पुस्तक है। (https://pratishruti.in/products/bhartiya-itihas-drishti-aur-marxwadi-lekhan-by-shankar-sharan)
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Book Book Indian Institute of Management LRC General Stacks Hindi Book 891.434 SHA (Browse shelf(Opens below)) 1 Available 008617

इतिहास के प्रति हिन्दू समाज की समझ पर अनेक भ्रम फैले रहे हैं। विशेषतः यह, कि हिन्दुओं में कोई इतिहास-बोध नहीं है। विदेशियों के अतिरिक्त, अब पश्चिमी शिक्षा से ग्रस्त अधिकांश हिन्दू भी इस भ्रामक धारणा के शिकार हैं। स्वतंत्र भारत में यह भ्रम फैलाने में वामपंथी प्रचारकों का बहुत बड़ा हाथ रहा है। बल्कि, इसी को आधार बनाकर उन्होंने भारतीय इतिहास, विशेषतः यहाँ इस्लामी आक्रमणों के बाद के इतिहास को मनमाने तौर पर विकृत भी किया है। उनके प्रभाव में हिन्दी साहित्य के अध्ययन-अध्यापन को भी भारी हानि पहुँचाई गई है।

यह पुस्तक इन्हीं तीन बिन्दुओं का एक संक्षिप्त आकलन है— (1) हिन्दू अथवा भारतीय इतिहास-बोध, (2) कार्ल मार्क्स और विविध मार्क्सवादियों द्वारा भारतीय इतिहास का विकृतिकरण, तथा (3) समकालीन हिन्दी साहित्य लेखन-चिन्तन पर इसका हानिकर प्रभाव। इन तीनों बिन्दुओं का आकलन क्रमशः कवि-चिंतक सच्चिदानन्द वात्स्यायन अज्ञेय’, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (नई दिल्ली) के प्रमुख मार्क्सवादी इतिहासकारगण, तथा मार्क्सवादी हिन्दी समीक्षक डॉ. रामविलास शर्मा के लेखन के आधार पर किया गया है। इस प्रमाणिक आकलन में वे सभी मुख्य बातें शामिल हैं, जिनसे भारतीय इतिहास-विमर्श ही नहीं, बल्कि राजनीतिक और साहित्यिक विमर्श भी अत्यंत दुष्प्रभावित रहा है।

लेखक ने सभी विचारों, तथ्यों और दलीलों को मूल संदर्भों के साथ रखकर अपना विश्लेषण किया है। उसका निष्कर्ष है कि स्वतंत्र भारत में मार्क्सवादी प्रचारकों ने इतिहास एवं साहित्य शिक्षण के साथ-साथ सामान्य विचार-विमर्श को भी भारी पैमाने पर हानि पहुँचाई है। यह विश्लेषण ऐसी प्रमाणिकता से किया गया है कि कोई भी पाठक, प्राध्यापक या आलोचक स्वयं सभी बिन्दुओं की परख कर सकते हैं। साथ ही, चाहें तो और भी विस्तृत अध्ययन की ओर बढ़ सकते हैं। अतः सामान्य सुधी पाठकों से लेकर इतिहास व साहित्य के जागरूक विद्यार्थियों के लिए यह एक अवश्य-पठनीय पुस्तक है।

(https://pratishruti.in/products/bhartiya-itihas-drishti-aur-marxwadi-lekhan-by-shankar-sharan)

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