kaljayee (कालजयी)
Material type:
- 9789383772889
- 891.431 MIS
Item type | Current library | Collection | Call number | Copy number | Status | Date due | Barcode | |
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Indian Institute of Management LRC General Stacks | Hindi Book | 891.431 MIS (Browse shelf(Opens below)) | 1 | Available | 008624 |
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891.431 MAH Gudiya rang bharegi: gudiya ke khel | 891.431 MIS Arambh hai prachand | 891.431 MIS Bina kaling vijay ke | 891.431 MIS kaljayee (कालजयी) | 891.431 NAR Atmajayee (आत्मजयी) | 891.431 NEE Jo kuchh hai bas hai (जो कुछ है बस है) | 891.431 NIV Tum mujhse fir milna (तुम मुझसे फिर मिलना) |
यह कथा व्यक्ति की नहीं/एक संस्कृति की है/स्नेह-शांति-शौर्य की, धृति की है ।
हिन्दी के अप्रतिम कवि भवानीप्रसाद मिश्र ने यह रचना— कालजयी— उत्तर रहित प्रश्नों का सामना करने के लिए रची है । कलिंग की जीत के बाद सम्राट अशोक विचारों के ऐसे चक्रव्यूह में अपने आपको घिरा हुआ पाता है जहाँ तर्क तो है पर अनुभव नहीं है। अशोक ने अपने राजकीय जीवन में द्रविड़, आर्य, शक, हूण, यवन आदि को जाना है। सबका रहना-सहना, कहना-करना और धर्माचरण देखा है । पर कहने और करने को कभी एक नहीं पाया है। इसी कारण उसके मन-प्राण विकल होकर उसी से पूछ रहे हैं कि जबसे जगत बना, जीत-हार के खेल के सिवा और हुआ ही क्या है। तुमने धरती जीती तो इससे क्या जीता। यदि तुम सबके मन पर प्रेम की छाप नहीं डाल सके तो नाममात्र के शासन से जीवन का उत्कर्ष कैसे सँभाला जा सकेगा। अपनी जय-जय सुनने की इच्छा आखिर तुम्हें किस ऊँचाई पर उठाकर ले जायेगी।
(https://pratishruti.in/products/kaljayee-khand-kabhya-by-bhawani-prasad-mishra)
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