Meri teri uski baat
Material type:
- 9788180313592
- 891.433 YAS
Item type | Current library | Collection | Call number | Copy number | Status | Date due | Barcode | |
---|---|---|---|---|---|---|---|---|
![]() |
Indian Institute of Management LRC General Stacks | Hindi Book | 891.433 YAS (Browse shelf(Opens below)) | 1 | Available | 008249 |
Browsing Indian Institute of Management LRC shelves, Shelving location: General Stacks, Collection: Hindi Book Close shelf browser (Hides shelf browser)
![]() |
![]() |
![]() |
![]() |
![]() |
![]() |
![]() |
||
891.433 YAS Jhootha sach: desh ka bhavishya (Vol. 2) | 891.433 YAS Divya | 891.433 YAS Jhootha sach: vatan or desh (Vol. 1) | 891.433 YAS Meri teri uski baat | 891.433 YAT Khandit samvaad (खंडित संवाद) | 891.43301 CHA Shakespeare ki kahaniyaan | 891.43301 SHA Apni dharti apne log |
युगद्रष्टा, क्रान्तिकारी और सक्रिय सामाजिक चेतना से सम्पन्न कथाकार यशपाल की कृतियाँ राजनीतिक और सामाजिक परिप्रेक्ष्य में आज भी प्रासंगिक हैं। स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान और स्वातंत्र्योत्तर भारत की दशा-दिशा पर उन्होंने अपनी कथा-रचनाओं में जो लिखा, उसकी महत्ता दस्तावेज़ के रूप में भी है और मार्गदर्शक वैचारिक के रूप में भी।
'मेरी तेरी उसकी बात' की पृष्ठभूमि में 1942 का भारत छोड़ो आन्दोलन है, लेकिन सिर्फ़ घटनाओं का वर्णन नहीं। एक दृष्टिसम्पन्न रचनाकार की हैसियत से यशपाल ने उसमें ख़ासतौर पर यह रेखांकित किया है कि क्रान्ति का अभिप्राय सिर्फ़ शासकों का बदल जाना नहीं, समाज और उसके दृष्टिकोण का आमूल परिवर्तन है।
स्त्री के प्रति प्रगतिशील और आधुनिक नज़रिया उनके अन्य उपन्यासों की तरह इस उपन्यास के भी प्रमुख स्वरों में एक है।
(युगद्रष्टा, क्रान्तिकारी और सक्रिय सामाजिक चेतना से सम्पन्न कथाकार यशपाल की कृतियाँ राजनीतिक और सामाजिक परिप्रेक्ष्य में आज भी प्रासंगिक हैं। स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान और स्वातंत्र्योत्तर भारत की दशा-दिशा पर उन्होंने अपनी कथा-रचनाओं में जो लिखा, उसकी महत्ता दस्तावेज़ के रूप में भी है और मार्गदर्शक वैचारिक के रूप में भी।
'मेरी तेरी उसकी बात' की पृष्ठभूमि में 1942 का भारत छोड़ो आन्दोलन है, लेकिन सिर्फ़ घटनाओं का वर्णन नहीं। एक दृष्टिसम्पन्न रचनाकार की हैसियत से यशपाल ने उसमें ख़ासतौर पर यह रेखांकित किया है कि क्रान्ति का अभिप्राय सिर्फ़ शासकों का बदल जाना नहीं, समाज और उसके दृष्टिकोण का आमूल परिवर्तन है।
स्त्री के प्रति प्रगतिशील और आधुनिक नज़रिया उनके अन्य उपन्यासों की तरह इस उपन्यास के भी प्रमुख स्वरों में एक है।)
There are no comments on this title.