Chhui-mui
Material type:
- 9788126727032
- 891.833 CHU
Item type | Current library | Collection | Call number | Copy number | Status | Date due | Barcode | |
---|---|---|---|---|---|---|---|---|
![]() |
Indian Institute of Management LRC General Stacks | Hindi Book | 891.833 CHU (Browse shelf(Opens below)) | 1 | Available | 008187 |
Browsing Indian Institute of Management LRC shelves, Shelving location: General Stacks, Collection: Hindi Book Close shelf browser (Hides shelf browser)
![]() |
![]() |
No cover image available |
![]() |
![]() |
![]() |
![]() |
||
891.463 TEN Khamosh! adalat jari hai | 891.47 SOL Arawali (अरावली) | 891.733 CHE Chekhov ki shrestha kahaniyan | 891.833 CHU Chhui-mui | 891.91431 ANA Roo Roo | 891.91431 CHI Mitti ka itra | 891.91431 DAB Neela darwaja |
‘तुम्हारे ख़मीर में तेज़ाबियत कुछ ज़्यादा है।’ किसी ने इस्मत आप से कहा था। तेजाबियत यानी कि कुछ तीखा, तुर्श और नरम दिलों को चुभनेवाला। उनकी यह विशेषता इस किताब में संकलित गद्य में अपने पूरे तेवर के साथ दिखाई देती है। ‘कहानी’ शीर्षक से उन्होंने बतौर विधा कहानी के सफ़र के बारे में अपने ख़ास अन्दाज़ में लिखा है जिसे यहाँ किताब की भूमिका के रूप में रखा गया है।
‘बम्बई से भोपाल तक’ एक रिपोर्ताज है, ‘फ़सादात और अदब’ मुल्क के बँटवारे के वक़्त लिखा गया उर्दू साहित्य पर केन्द्रित और ‘किधर जाएँ’ अपने समय की आलोचना से सम्बन्धित आलेख हैं। श्रेष्ठ उर्दू गद्य के नमूने पेश करते ये आलेख इस्मत चुग़ताई के विचार-पक्ष को बेहद सफ़ाई और मज़बूती से रखते हैं। मसलन मुहब्बत के बारे में छात्राओं के सवाल पर उनका जवाब देखिए—‘एक इसम की ज़रूरत है, जैसे भूख और प्यास। अगर वह जिंसी ज़रूरत है तो उसके लिए गहरे कुएँ खोदना हिमाक़त है। बहती गंगा में भी होंट टार किए जा सकते हैं। रहा दोस्ती और हमख़याली की बिना पर मुहब्बत का दारोमदार तो इस मुल्क की हवा उसके लिए साज़गार नहीं।’
किताब में शामिल बाक़ी रचनाओं में भी कहानीपन के साथ संस्मरण और विचार का मिला-जुला रसायन है जो एक साथ उनके सामाजिक सरोकारों, घर से लेकर साहित्य और देश की मुश्किलों पर उनकी साफ़गो राय के बहाने उनके तेज़ाबी ख़मीर के अनेक नमूने पेश करता है। एक टुकड़ा ‘पौम-पौम डार्लिंग’ से, यह आलेख क़ुर्रतुल ऐन हैदर की समीक्षा के तौर पर उन्होंने लिखा था जिसे जनता और जनता के साहित्य की सामाजिकता पर एक महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ के रूप में पढ़ा जा सकता है। हैदर साहिबा के पात्रों पर उनका कहना था—‘लड़कियों और लड़कों के जमघट होते हैं, मगर एक क़िस्म की बेहिसी तारी रहती है। हसीनाएँ बिलकुल थोक के माल की तरह परखती और परखी जाती हैं। मानो ताँबे की पतीलियाँ ख़रीदी जा रही हों।’
(https://rajkamalprakashan.com/chhui-mui.html)
There are no comments on this title.