Sampoorna kavitayein (सम्पूर्ण कविताएँ)
Material type:
- 9789360861940
- 891.431 KUM
Item type | Current library | Collection | Call number | Copy number | Status | Date due | Barcode | |
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Indian Institute of Management LRC General Stacks | Hindi Book | 891.431 KUM (Browse shelf(Opens below)) | 1 | Available | 008196 |
कुमार विकल राजनीतिक कवि हैं। उनकी कविता पढ़ते हुए पाठकों को स्वाधीनता के बाद की भारतीय राजनीति की कुछ अत्यन्त भयावह वास्तविकताओं और त्रासद स्थितियों की संवेदनशील पहचान मिलती है। उनकी कविताओं में आपातकाल के गहरे आतंक के दिल दहलाने वाले चित्र हैं, नक्सलबाड़ी आन्दोलन के ख़ूँख़्वार दमन की विभीषिका की अभिव्यक्ति है और पंजाब में आतंक के राज से उपजी दहशत की ख़बरें हैं। लेकिन वे राजनीतिक घटनाओं के ब्यौरों पर नहीं, उनके सामाजिक अभिप्राय, जनजीवन पर पड़ने वाले प्रभाव और मनुष्य के लिए उनके अर्थ के बारे में लिखते हैं।
इन कविताओं से गुज़रते हुए यह भी मालूम होता है कि कुमार विकल को हर तरह के छद्म और पाखंड से चिढ़ है; वह चाहे समाज में हो, साहित्य में हो या रचना की भाषा में। इस छद्म को उघाड़ने की वे बार-बार कोशिश करते हैं। उन्हें कविता की ताक़त पर बहुत भरोसा रहा इसलिए उन्होंने नए अनुभवों, नए अर्थों और नए भाषिक रचाव के लिए संघर्ष करनेवाली कविताएँ लिखीं, लेकिन वे अपने समय और समाज में कविता की सीमाएँ भी जानते थे, इसलिए ‘अपनी कविता से बाहर’ ‘कविता से कोई बड़ा हथियार’ गढ़ने की बात भी करते हैं।
कुमार विकल की कविता एक बेचैन मन की कविता है। यह बेचैनी जितनी राजनीतिक है उतनी ही नैतिक भी है। वे एक ओर भारत में फैलते वनतंत्र में साधारण आदमी को लगातार असुरक्षित देखकर बेचैन होते हैं तो दूसरी ओर सुरक्षा की चाहत के शिकार मनुष्य की मरती हुई मनुष्यता भी उन्हें व्याकुल करती है!
उनकी सम्पूर्ण कविताओं की यह प्रस्तुति निश्चय ही कविता-प्रेमी पाठकों के लिए एक उत्तेजक अनुभव सिद्ध होगी।
(https://rajkamalprakashan.com/sampoorna-kavitayein-kumar-vikal.html)
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