Pratinidhi Kavitayein
Material type:
- 9789360862381
- 891.431 VAL
Item type | Current library | Collection | Call number | Copy number | Status | Date due | Barcode | |
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Indian Institute of Management LRC General Stacks | Hindi Book | 891.431 VAL (Browse shelf(Opens below)) | 1 | Available | 008247 |
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891.431 TRI Naye patte | 891.431 TRI Raag-virag | 891.431 VAJ Dooba sa andooba tara (डूबा सा अनडूबा तारा) | 891.431 VAL Pratinidhi Kavitayein | 891.431 VER Yama (यामा) | 891.431 YAD Qalam zinda rahega (कलम ज़िन्दा रहेगा) | 891.43109 RAT Vanpakhi utare pahad se |
ओमप्रकाश वाल्मीकि ने कविता, कहानी और आत्मकथा के साथ आलोचना भी लिखी है। लेकिन मूल रूप से वे कवि ही हैं। उनके रचनाकार व्यक्तित्व को अभिव्यक्ति सबसे पहले कविता में ही मिली।
वे मानते थे कि दलित कविता में जो नकार है वह अतीत से चली आ रही मान्यताओं से है, वर्तमान के छद्म से है, लेकिन उसका मुख्य उद्देश्य जीवन में घृणा के स्थान पर प्रेम, समता और बन्धुता का संचार करना ही है। उनकी प्रतिनिधि कविताओं के इस संकलन में शामिल कविताएँ भी यही सिद्ध करती हैं। वे सवाल उठाते हैं, दलितों के यथार्थ को सामने रखते हैं, लेकिन प्रतिशोध की भावना से नहीं, न्याय की चेतना से प्रेरित होकर। ये कविताएँ एकदम सीधी और सरल शब्दावली में ऐसे कितने ही प्रश्न उठाती हैं जिनके सामने सवर्ण हिन्दू समाज को अपनी तमाम ताकत के बावजूद मौन रह जाना पड़ता है।
(https://rajkamalprakashan.com/pratinidhi-kavitayen-om-prakash-valmiki.html)
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