Bapu
Material type:
- 9788119996438
- 891.431 SIN
Item type | Current library | Collection | Call number | Copy number | Status | Date due | Barcode | |
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Indian Institute of Management LRC General Stacks | Hindi Book | 891.431 SIN (Browse shelf(Opens below)) | 1 | Available | 008200 |
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ लिखते हैं कि “बापू के इर्द-गिर्द कल्पना बहुत दिनों से मँडरा रही थी।” इसी कल्पना का साकार रूप है : बापू! ‘बापू’ दीर्घ कविता के रूप में ऐसा काव्य-स्तवक है जो भारतीय मानस के जातीय प्रसंगों में महात्मा गांधी के योगदान को अविस्मरणीय बना देता है।
वे कहते हैं कि यह छोटी-सी पुस्तक दरअसल महात्मा गांधी के औदात्य के समक्ष या उनके विराट व्यक्तित्व के श्रीचरणों में वामन का दिया हुआ क्षुद्र उपहार ही है। साहित्य-कला से परे, इस कविता पुस्तक का एक यही उल्लेखनीय महत्त्व भी हो सकता है।
‘बापू’ कविता पुस्तक के पाँच भाग हैं; पहले भाग का शीर्षक है ‘बापू’, जो महात्मा गांधी के जीवन का वैभव दर्शाती है। इसके दूसरे भाग का शीर्षक ‘वज्रपात!’ है, जो बापू की हत्या के बाद 31 जनवरी, 1948 ई. को लिखी गई थी; इसमें गांधी के जीवन के आदर्शों की स्मृति का भावपूर्ण स्मरण है। इस कविता पुस्तक का तीसरा भाग ‘अघटन घटना, क्या समाधान?’ में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की स्मृतियों के आलोक में करुणामय आत्म-स्वीकृतियाँ व्यक्त हुई हैं। चौथा और पाँचवाँ भाग क्रमश: ‘बापू’ और ‘भारत का आगमन’ रामधारी सिंह दिनकर की एक अन्य कृति ‘धूप और धुआँ’ (1949) से संकलित की गई है जो इस पुस्तक को सम्पूर्ण बनाती है।
बापू को आज भी देश की सर्वाधिक मूल्यवान उपलब्धियों में एक मानने वाले पाठक इस कविता पुस्तक में अपने हृदय के भावों का प्रतिबिम्ब देखते रहे हैं।
(https://rajkamalprakashan.com/bapu.html)
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