Log bhool gaye hain (Record no. 9242)

MARC details
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020 ## - INTERNATIONAL STANDARD BOOK NUMBER
International Standard Book Number 9788126706006
082 ## - DEWEY DECIMAL CLASSIFICATION NUMBER
Classification number 891.431
Item number SAH
100 ## - MAIN ENTRY--PERSONAL NAME
Personal name Sahay, Raghuvir
245 ## - TITLE STATEMENT
Title Log bhool gaye hain
250 ## - EDITION STATEMENT
Edition statement 10th
260 ## - PUBLICATION, DISTRIBUTION, ETC. (IMPRINT)
Name of publisher, distributor, etc. Rajkamal Prakashan
Place of publication, distribution, etc. New Delhi
Date of publication, distribution, etc. 2024
300 ## - PHYSICAL DESCRIPTION
Extent 102 p.
365 ## - TRADE PRICE
Price type code INR
Price amount 495.00
520 ## - SUMMARY, ETC.
Summary, etc. रघुवीर सहाय की कविताओं में हम एक ऐसे आधुनिक मानस को देख पाते हैं जो बौद्धिक और रागात्मक अनुभूतियों से सन्तुष्ट होकर अपने लिए एक सुरक्षित संसार की सृष्टि नहीं कर लेता; उसमें रहने लगना कवि के लिए एक भयावह कल्पना है। आज के पतनशील समाज में ऐसे अनेक सुरक्षित संसार विविध कार्य–क्षेत्रों में बन गए हैं—साहित्य में भी—और इनमें बूड़ जाने का ख़तरा पिछले कुछ वर्षों में बढ़ते–बढ़ते तीव्रतम हो गया है। परन्तु (बातचीत में रघुवीर सहाय कहते हैं कि) समाज कविताओं से भरा पड़ा है : सड़क पर चलते ही हम उनसे टकराएँगे और हर कविता एक नया परिचय कराएगी। इस संग्रह की रचनाएँ कवि के निरन्तर बढ़ते हुए परिचयों के पीछे उसकी सामाजिक चेतना के विकास का भी संकेत देती हैं : कवि की चिन्ता है कि उस विकास के बिना कविता लिखते जाने का कोई मतलब ही नहीं होगा।<br/><br/>आज के पतनशील समाज के प्रति कवि की दृष्टि विरोध की है, परन्तु वह अपने काव्यानुभव से जानता है कि वह रचना जो पाठक के मन में पतन का विकल्प जाग्रत् नहीं करती, न साहित्य की उपलब्धि होती है न समाज की। ‘आत्महत्या के विरुद्ध’ की परम्परा में वह उस शक्ति को बचा रखने को आतुर है जो उसने ‘दूसरा सप्तक’ और ‘सीढ़ियों पर धूप में’ पाई थी और जिस पर आए हुए ख़तरे को उसने ‘हँसो, हँसो जल्दी हँसो’ में दिखाया था। वह मानता है कि यही खोज नए समाज में न्याय और बराबरी की सच्ची लोकतंत्रीय समझ और आकांक्षा जगाती है और ऐसे समाज की रचना के लिए साहित्यिक और साहित्येतर क्षेत्रों में संघर्ष का आधार बनती है। जहाँ कहीं जन की यह शक्ति पतनोन्मुख संस्कृति के माध्यमों द्वारा भ्रष्ट की जा रही हो वहाँ वह चेतावनी देता है और जहाँ वह बची रहने पर भी देखी नहीं जा रही हो, उसकी पहचान कराता है। वह बचाने के लिए तोड़ता है और तोड़ने के लिए तोड़ने के व्यावसायिक उद्देश्य का विरोध करता है। पीड़ा को पहचानने की कोशिश वह ऐसे करता है कि उसी समय पीड़ा का सामाजिक अर्थ भी प्रकट हो जाए—वह मानता है कि सामाजिक चेतना का कोई अक्षर भंडार नहीं हो सकता, उसकी समृद्धि लोकतंत्र के पक्ष में संघर्ष से करती रहनी पड़ती है और इसी तरह सामाजिक नैतिकता की भी। ये कविताएँ इसी परम्परा की आज के दौर की अभिव्यक्तियाँ हैं।<br/><br/>(https://rajkamalprakashan.com/log-bhool-gaye-hain.html)
650 ## - SUBJECT ADDED ENTRY--TOPICAL TERM
Topical term or geographic name as entry element Hindi poetry
650 ## - SUBJECT ADDED ENTRY--TOPICAL TERM
Topical term or geographic name as entry element Hindi poem
942 ## - ADDED ENTRY ELEMENTS (KOHA)
Koha item type Book
Source of classification or shelving scheme Dewey Decimal Classification
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Withdrawn status Lost status Source of classification or shelving scheme Damaged status Not for loan Collection code Bill No Bill Date Home library Current library Shelving location Date acquired Source of acquisition Cost, normal purchase price Total Checkouts Full call number Accession Number Date last seen Date checked out Copy number Cost, replacement price Price effective from Koha item type
    Dewey Decimal Classification     Hindi Book COR/IN/25/11909 15-03-2025 Indian Institute of Management LRC Indian Institute of Management LRC General Stacks 03/27/2025 CBS Publishers & Distributors Pvt. Ltd. 344.03 1 891.431 SAH 008202 05/05/2025 05/01/2025 1 495.00 03/27/2025 Book

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