Hum apni parampara nahi chorenge (हम अपनी परम्परा नहीं छोड़ेंगे)
Singh, Thakur Prasad
Hum apni parampara nahi chorenge (हम अपनी परम्परा नहीं छोड़ेंगे) - Kolkata Pratishruti Prakashan 2019 - 144 p.
ठाकुर प्रसाद सिंह की इस कृति में संग्रहित निबंधों की छटा-खुशबू अपनी अलग धज लिए है। हृदयग्राही हँसमुख भाषा, स्थानीय रंजकता, व्यंग्य की मार्मिकता, मिथक और इतिहास की गहरी समझ तथा सांस्कृतिक भाव-संपन्नता से ये लेख समृद्ध हैं। नब्बे के दशक में लिखी ये रचनाएं अधिकांशतः दिनमान और बनारस-लखनऊ की पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हैं और यहां पहले द़फे संकलित हैं। कुछ नये एवं अप्रकाशित भी हैं।
(https://pratishruti.in/products/ham-apni-parampara-nahi-chorenge-by-thakur-prasad-singh)
9789383772858
Hindi essays
Personal essays
891.433 / SIN
Hum apni parampara nahi chorenge (हम अपनी परम्परा नहीं छोड़ेंगे) - Kolkata Pratishruti Prakashan 2019 - 144 p.
ठाकुर प्रसाद सिंह की इस कृति में संग्रहित निबंधों की छटा-खुशबू अपनी अलग धज लिए है। हृदयग्राही हँसमुख भाषा, स्थानीय रंजकता, व्यंग्य की मार्मिकता, मिथक और इतिहास की गहरी समझ तथा सांस्कृतिक भाव-संपन्नता से ये लेख समृद्ध हैं। नब्बे के दशक में लिखी ये रचनाएं अधिकांशतः दिनमान और बनारस-लखनऊ की पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हैं और यहां पहले द़फे संकलित हैं। कुछ नये एवं अप्रकाशित भी हैं।
(https://pratishruti.in/products/ham-apni-parampara-nahi-chorenge-by-thakur-prasad-singh)
9789383772858
Hindi essays
Personal essays
891.433 / SIN