Baa
Kishore, Giriraj
Baa - 2nd - New Delhi Rajkamal Prakashan 2017 - 279 p.
गांधी को लेकर एक बड़ा और चर्चित उपन्यास लिख चुके गिरिराज जी इस उपन्यास में कस्तूरबा गांधी को लेकर आए हैं। गांधी जैसे व्यक्तित्व की पत्नी के रूप में एक स्त्री का स्वयं अपने और साथ ही देश की आज़ादी के आन्दोलन से जुदा दोहरा संघर्ष। ऐसे दस्तावेज़ बहुत कम हैं जिनमें कस्तूरबा के निजी जीवन या उनकी व्यक्ति-रूप में पहचान को रेखांकित किया जा सका हो, नहीं के बराबर। इसीलिए उपन्यासकार को भी इस रचना के लिए कई स्तरों पर शोध करना पड़ा। जो किताबें उपलब्ध थीं, उनको पढ़ा, जिन जगहों से बा का सम्बन्ध था, उनकी भीतरी और बाहरी यात्रा की और उन लोगों से भी मिले जिनके पास बा से सम्बन्धित कोई भी सूचना मिल सकती थी।
इतनी मशक्कत के बाद आकार पा सका यह उपन्यास अपने उद्देश्य में इतनी सम्पूर्णता के साथ सफल हुआ है, यह सुखद है। इस उपन्यास से गुज़रने के बाद हम उस स्त्री को एक व्यक्ति के रूप में चीन्ह सकेंगे जो बापू के बापू बनने की ऐतिहासिक प्रक्रिया में हमेशा एक ख़ामोश ईंट की तरह नींव में बनी रही। और उस व्यक्तित्व को भी जिसने घर और देश की ज़िम्मेदारियों को एक धुरी पर साधा। उन्नीसवीं सदी के भारत में एक कम उम्र लड़की का पत्नी रूप में होना और फिर धीरे-धीरे पत्नी होना सीखना, उस पद के साथ जुड़ी उसकी इच्छाएँ, कामनाएँ और फिर इतिहास के एक बड़े चक्र के फलस्वरूप एक ऐसे व्यक्ति की पत्नी के रूप में ख़ुद को पाना जिसकी ऊँचाई उनके समकालीनों के लिए भी एक पहेली थी। यह यात्रा लगता है कई लोगों के हिस्से की थी जिसने बा ने अकेले पूरा किया। यह उपन्यास इस यात्रा के हर पड़ाव को इतिहास की तरह रेखांकित भी करता है और कथा की तरह हमारी स्मृति का हिस्सा भी बनाता है।
इस उपन्यास में हम ख़ुद बापू के भी एक भिन्न रूप से परिचित होते हैं। उनका पति और पिता का रूप। घर के भीतर वह व्यक्ति कैसा रहा होगा, जिसे इतिहास ने पहले देश और फिर पूरे विश्व का मार्गदर्शक बनते देखा, उपन्यास के कथा-फ़ेम में यह महसूस करना भी एक अनुभव है।
(https://rajkamalprakashan.com/baa.html)
9788126728336
Hindi novel
891.433 / KIS
Baa - 2nd - New Delhi Rajkamal Prakashan 2017 - 279 p.
गांधी को लेकर एक बड़ा और चर्चित उपन्यास लिख चुके गिरिराज जी इस उपन्यास में कस्तूरबा गांधी को लेकर आए हैं। गांधी जैसे व्यक्तित्व की पत्नी के रूप में एक स्त्री का स्वयं अपने और साथ ही देश की आज़ादी के आन्दोलन से जुदा दोहरा संघर्ष। ऐसे दस्तावेज़ बहुत कम हैं जिनमें कस्तूरबा के निजी जीवन या उनकी व्यक्ति-रूप में पहचान को रेखांकित किया जा सका हो, नहीं के बराबर। इसीलिए उपन्यासकार को भी इस रचना के लिए कई स्तरों पर शोध करना पड़ा। जो किताबें उपलब्ध थीं, उनको पढ़ा, जिन जगहों से बा का सम्बन्ध था, उनकी भीतरी और बाहरी यात्रा की और उन लोगों से भी मिले जिनके पास बा से सम्बन्धित कोई भी सूचना मिल सकती थी।
इतनी मशक्कत के बाद आकार पा सका यह उपन्यास अपने उद्देश्य में इतनी सम्पूर्णता के साथ सफल हुआ है, यह सुखद है। इस उपन्यास से गुज़रने के बाद हम उस स्त्री को एक व्यक्ति के रूप में चीन्ह सकेंगे जो बापू के बापू बनने की ऐतिहासिक प्रक्रिया में हमेशा एक ख़ामोश ईंट की तरह नींव में बनी रही। और उस व्यक्तित्व को भी जिसने घर और देश की ज़िम्मेदारियों को एक धुरी पर साधा। उन्नीसवीं सदी के भारत में एक कम उम्र लड़की का पत्नी रूप में होना और फिर धीरे-धीरे पत्नी होना सीखना, उस पद के साथ जुड़ी उसकी इच्छाएँ, कामनाएँ और फिर इतिहास के एक बड़े चक्र के फलस्वरूप एक ऐसे व्यक्ति की पत्नी के रूप में ख़ुद को पाना जिसकी ऊँचाई उनके समकालीनों के लिए भी एक पहेली थी। यह यात्रा लगता है कई लोगों के हिस्से की थी जिसने बा ने अकेले पूरा किया। यह उपन्यास इस यात्रा के हर पड़ाव को इतिहास की तरह रेखांकित भी करता है और कथा की तरह हमारी स्मृति का हिस्सा भी बनाता है।
इस उपन्यास में हम ख़ुद बापू के भी एक भिन्न रूप से परिचित होते हैं। उनका पति और पिता का रूप। घर के भीतर वह व्यक्ति कैसा रहा होगा, जिसे इतिहास ने पहले देश और फिर पूरे विश्व का मार्गदर्शक बनते देखा, उपन्यास के कथा-फ़ेम में यह महसूस करना भी एक अनुभव है।
(https://rajkamalprakashan.com/baa.html)
9788126728336
Hindi novel
891.433 / KIS