Baba Batersarnath

Nagarjun

Baba Batersarnath - 10th - New Delhi Rajkamal Prakashan 2024 - 159 p.

अगर यह कहना सच है कि भारत की आत्मा गाँवों में निवास करती है, तो यह कहना सच को रेखांकित करना है कि नागार्जुन के उपन्यासों में इस महादेश की आत्मा साकार हो उठी है। वे सच्चे अर्थों में जनवादी कथाकार हैं–जनसाधारण की बात को जनसाधारण के लिए जनसाधारण की भाषा में कहनेवाले कथाकार। उनके भाषा-शिल्प में कहीं कोई घटाटोप नहीं, बनावट नहीं; अगर कुछ है तो जीवन का सहज प्रवाह; और इसीलिए मन को छू लेने की जैसी शक्ति उनके उपन्यासों में है, वह कम देखने को मिलती है।

बाबा बटेसरनाथ रचना-शिल्प की दृष्टि से नागार्जुन का विलक्षण प्रयोग है। इसका कथानायक कोई मानव-शरीरधारी नहीं, बल्कि एक बूढ़ा बरगद है जिसके प्रति गाँव के लोगों की भावना वैसी ही है जैसी अपने किसी बड़े-बूढ़े के प्रति होती है, और इसीलिए वे लोग उस पेड़ को साधारण ‘बरगद’ नाम से नहीं, बल्कि आदरसूचक ‘बाबा बटेसरनाथ’ कहकर पुकारते हैं। यही बाबा बटेसरनाथ अपनी कहानी सुनाते-सुनाते पूरे गाँव की कहानी सुना जाते हैं, जिसकी कई पीढ़ियों के इतिहास के वे साक्षी रहे हैं। ग्रामीण जीवन के सुख-दुख, ह्रास-रुदन और अभाव-अभियोगों का इसमें बड़ा ही सहज और मर्मस्पर्शी चित्रण हुआ है।

(https://rajkamalprakashan.com/baba-batesarnath.html)

9788126705023


Hindi novel

891.433 / NAG

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