Maya ne ghumayo: baccho ko na sunne layak baal kathayen

Pandey, Mrinal

Maya ne ghumayo: baccho ko na sunne layak baal kathayen - 2nd - New Delhi Radhakrishna Prakashan 2024 - 215 p.

‘माया ने घुमायो’ उन कहानियों की आधुनिक प्रस्तुति है जो हमें वाचिक परंपरा से मिली हैं। ये कहानियाँ अपनी कल्पनाओं, अतिरंजनाओं और अपने पात्रों के साथ सुदूर अतीत से हमारे साथ हैं और मानव समाज, उसके मन-मस्तिष्क के साथ मनुष्य की महानताओं-निर्बलताओं का गहरा तथा सटीक अध्ययन करती रही हैं। बिलकुल नानी-दादियों की उन कहानियों की तरह जिन्हें हमारी कई पीढ़ियों ने बचपन में सुना, और दुनिया को अपनी तरह से समझा जो एक ही समय में इतनी विराट, इतनी क्षुद्र, इतनी कठिन और इतनी सहज होती है।

इन कहानियों में वर्चस्व की लिप्सा है, आतंक है, कमजोरों की दीनता और असहायता है, चालाक गीदड़ है, आतंकी सिंह है, और साथ ही है हमारी समकालीन राजनीति और आसपास के सामाजिक-आर्थिक तंत्र में नए-नए आए जुमलों और शब्दों की बुनत जो इन कथाओं को अनायास ही हमारे आज की 'सत्यकथा' में बदल देती हैं। यही वह बिन्दु है जहाँ बच्चों को पूरी-पूरी समझ में आ जाने वाली ये कहानियाँ पाठक से एक वयस्क मस्तिष्क की माँग करने लगती हैं।

वे आधारभूत सत्य, जिजीविषा की वे आदिम प्रेरणाएँ जो इस दुनिया को गति देती हैं, इसे 'रहने' और 'नहीं रहने' लायक बनाती हैं और जिनके कारण ही हर कला, हर कथा को अपने होने का तर्क मिलता है, और जो हर किस्म की प्रगति के बावजूद मनुष्य मन के दरवाजे पर अपना प्राचीन लट्ठ लिये पहरा देती आई हैं, लोककथाएँ उन्हें ही अपना खाद-पानी बनाती आई हैं। मृणाल पाण्डे ने यहाँ उसका प्रयोग अपनी सक्षम और प्रवहमान भाषा और गहरी सामाजिक-राजनीतिक समझ के साथ किया है।

(https://rajkamalprakashan.com/maya-ne-ghumayo.html)

9789391950163


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