000 | 01517nam a22001817a 4500 | ||
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005 | 20250506173228.0 | ||
008 | 250506b |||||||| |||| 00| 0 eng d | ||
020 | _a9789383772896 | ||
082 |
_a891.433 _bSIN |
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100 |
_aSingh, Thakur Prasad _921895 |
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245 | _aKubja sundari (कुब्जा सुन्दरी) | ||
260 |
_aKolkata _bPratishruti Prakashan _c2020 |
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300 | _a155 p. | ||
365 |
_aINR _b390.00 |
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520 | _aकुब्जा सुन्दरी एक ऐसे कवि-लेखक का उपन्यास है, जिसे नियति ने काशी से सुदूर संथाल परगना में फेंक दिया पर उसका जीवन थमा नहीं। जीवन की सतत खोज ने उसे जैसे एक जीवन-लक्ष्य दे दिया आदिवासियों के बीच उनके आदिम उद्वेग को निरखने परखने का। संथाल परगना के प्रवास ने पहले वंशी और मादल (1959) के गीत दिए और कुछ वर्ष अनंतर ही आदिम राग में नहाया, गद्य-नृत्य करता पहला उपन्यास कुब्जा सुन्दरी। (https://pratishruti.in/products/kubja-sundari-by-thakur-prasad-singh) | ||
650 | _aHindi novel | ||
942 |
_cBK _2ddc |
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999 |
_c9506 _d9506 |