000 | 02856nam a22001817a 4500 | ||
---|---|---|---|
005 | 20250506172944.0 | ||
008 | 250506b |||||||| |||| 00| 0 eng d | ||
020 | _a9789384012328 | ||
082 |
_a808.81 _bSHA |
||
245 | _aKoi aur Rakesh Shrimal (कोई और राकेश श्रीमाल) | ||
260 |
_aKolkata _bPratishruti Prakashan _c2021 |
||
300 | _a240 p. | ||
365 |
_aINR _b360.00 |
||
520 | _aसंसार में मनुष्य बहुतेरे माध्यमों से खुद को अभिव्यक्त करता है। कभी वह अभिव्यक्ति भाषा के रूप में होती है, तो कभी अपने कर्म से, कभी वह कला के माध्यम से आत्म-प्रकटीकरण करता है; मानव द्वारा ऐसा प्रकटीकरण बड़ा गहरा माना जाता है। कदाचित यही वजह है कि रस्किन ने कला के विषय में कहा था कि ‘मानव की बहुमुखी भावनाओं का प्रबल प्रवाह जब रोके नहीं रुकता, तभी वह कला के रूप में फूट पड़ता है।’ अर्थात दूसरे शब्दों में कहा जाए तो कला का सम्बंध मनुष्य के अन्तःकरण से है। इसी कला-जगत में अपना महत्वपूर्ण योगदान देने वाले राकेश श्रीमाल ने अपनी सर्जना के माध्यम से कई बड़े साहित्यकारों, पत्रकारों, संगीतकारों, चित्रकारों व कलाप्रेमियों को अपनी ओर आकर्षित किया है। कला के प्रति प्रेम ही श्रीमाल जी के सृजनशीलता की ऊर्जा है। इसी बात को थोड़ा और स्पष्ट करूँ तो जिस प्रकार चित्रकला का माध्यम रंग है, संगीत का माध्यम नाद है, उसी प्रकार उनकी रचनात्मकता का राज़ लोगों के प्रति उनका समर्पण भाव है। (https://pratishruti.in/products/koi-aur-rakesh-sreemal-by-edi-vivek-kumar-shaw) | ||
650 |
_aAntology _923928 |
||
700 |
_aShaw, Vivek Kumar [Editor] _923929 |
||
942 |
_cBK _2ddc |
||
999 |
_c9505 _d9505 |