000 | 01678nam a22001937a 4500 | ||
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005 | 20250506164350.0 | ||
008 | 250506b |||||||| |||| 00| 0 eng d | ||
020 | _a9789383772858 | ||
082 |
_a891.433 _bSIN |
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100 |
_aSingh, Thakur Prasad _921895 |
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245 | _aHum apni parampara nahi chorenge (हम अपनी परम्परा नहीं छोड़ेंगे) | ||
260 |
_aKolkata _bPratishruti Prakashan _c2019 |
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300 | _a144 p. | ||
365 |
_aINR _b380.00 |
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520 | _aठाकुर प्रसाद सिंह की इस कृति में संग्रहित निबंधों की छटा-खुशबू अपनी अलग धज लिए है। हृदयग्राही हँसमुख भाषा, स्थानीय रंजकता, व्यंग्य की मार्मिकता, मिथक और इतिहास की गहरी समझ तथा सांस्कृतिक भाव-संपन्नता से ये लेख समृद्ध हैं। नब्बे के दशक में लिखी ये रचनाएं अधिकांशतः दिनमान और बनारस-लखनऊ की पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हैं और यहां पहले द़फे संकलित हैं। कुछ नये एवं अप्रकाशित भी हैं। (https://pratishruti.in/products/ham-apni-parampara-nahi-chorenge-by-thakur-prasad-singh) | ||
650 |
_aHindi essays _922763 |
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650 |
_aPersonal essays _922762 |
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942 |
_cBK _2ddc |
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999 |
_c9501 _d9501 |