000 02097nam a22001937a 4500
005 20250506141526.0
008 250506b |||||||| |||| 00| 0 eng d
020 _a9789383772803
082 _a791.43
_bSHA
100 _aShahbaz, Saiyad Tauheed
_921892
245 _aCinema:
_bek duniya samanantar (सिनेमा : एक दुनिया समानांतर)
260 _aKolkata
_bPratishruti Prakashan
_c2020
300 _a197 p.
365 _aINR
_b520.00
520 _aव्यक्ति व समाज के पहलुओं पर विचार-विमर्श का एक ज़रिया फिल्में हो सकती हैं। फिल्मों से गुज़रते हुए ऐसा ही महसूस होता है। फिल्मों पर लिखते हुए आदमी विभिन्न समयकाल से रूबरू हो जाता है। कहानी व पात्रों से करीबी साक्षात्कार होता है। समस्या से अवगत होता है। समाधान की राहें समझ में आती हैं। एक नई दुनिया से साक्षात्कार होता है। उलझनों में सुलझन की राह दिखाई देती है। अनुभव की एक दुनिया निर्मित होती है। एक ओपन प्लेटफॉर्म का हिस्सा होकर मुझे यह अनुभव बहुत आकर्षित करता है। सिनेमा की अपील पूरी तरह से सार्वभौमिक है। सिनेमा आसानी से नई तकनीक आत्मसात कर लेता है। (https://pratishruti.in/products/cinema-ek-duniya-saamanantar-by-sayad-tauhid-sahabaz)
650 _aFilm
_923901
650 _aArts
_923902
942 _cBK
_2ddc
999 _c9498
_d9498