000 | 06314nam a22001937a 4500 | ||
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082 |
_a891.433 _bHUS |
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100 |
_aHussein, Abdullah _923132 |
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245 | _aUdas naslein | ||
250 | _a4th | ||
260 |
_bRajkamal Prakashan _aNew Delhi _c2023 |
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300 | _a423 p. | ||
365 |
_aINR _b499.00 |
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520 | _aभारत के विभाजन और विस्थापन का गहरा चित्रण सबसे ज़्यादा उर्दू, उसमें भी ख़ासकर पाकिस्तान के कथा-साहित्य में हुआ है। इसका सबसे बड़ा कारण शायद यह है कि मुख्य भूमि को छोड़कर वहाँ गए लेखक अब भी किसी न किसी स्तर पर विस्थापन के दर्द को महसूस करते हैं। हालाँकि, उनका लेखन एक महान सामाजिक संस्कृति और विरासत से कट जाने के दर्द तक ही सीमित नहीं है, बल्कि उसमें अपनी अस्मिता को नए ढंग से परिभाषित करने का उपक्रम भी है। पाकिस्तान के सुविख्यात लेखक अब्दुल्लाह हुसैन के इस उपन्यास की विशेषता यह है कि इसका कथानक विभाजन और विस्थापन तक सीमित नहीं है, बल्कि अन्य कई प्रकार की अस्मिताओं की टकराहट इसमें देखी जा सकती है। भारतीय उपमहाद्वीप के परम्परागत समाज के आधुनिक समाज में तब्दील होने की जद्दोजहद इसके केन्द्र में है। उपन्यास का कथानक प्रथम विश्वयुद्ध के कुछ पूर्व से विभाजन और उसके पश्चात् की घटनाओं और उपद्रवों के समय तक फैला हुआ है। विशाल कैनवस वाला यह उपन्यास तीन युगों का दस्तावेज़ है। पहला अंग्रेज़ी साम्राज्य का युग, दूसरा स्वतंत्रता की प्राप्ति के लिए संघर्ष का काल और तीसरा विभाजन के पश्चात् का ज़माना। इसमें हिन्दुस्तान में बसनेवाली कई पीढ़ियों के साथ बदलते हुए ज़मानों का चित्रण है और समाज, सभ्यता तथा राजनीति की पृष्ठभूमि में बदलती हुई सोच का भी। ‘उदास नस्लें’ का नायक कोई व्यक्ति न होकर, समकालीन जीवन के विभिन्न कालखंड और उनसे गुज़रते हुए संघर्ष तथा व्यथा के भँवर में घिरी तीन पीढ़ियाँ हैं। इतिहास का ताना-बाना उन्हीं के अनुभवों के इर्द-गिर्द बुना गया है। इसमें शहरी तथा ग्रामीण पृष्ठभूमि वाले दो परिवारों की कथा है। नईम और अज़रा दो भिन्न समाजों और मानसिक और भावात्मक सरोकार के दो विपरीत पक्षों के प्रतिनिधि हैं। उनके बीच प्रक्रिया और प्रतिक्रिया का सिलसिला जारी रहता है। वे दोनों अपनी जड़ों से तो नहीं कट सकते, क्योंकि वे उनके संस्कारों का हिस्सा बन चुकी हैं, फिर भी एक प्रकार के कायाकल्प की प्रक्रिया से वे ज़रूर गुज़रते हैं। नईम अपने स्वभाव और मूल वृत्तियों से धरती का बेटा है, परन्तु अज़रा के माध्यम से उसका परिचय उस जीवन से होता है जो किसी हद तक परम्परागत मान्यताओं के अनुरूप नहीं है। नईम और अज़रा की आपसी निष्ठा और आत्मीयता में प्रेम का तत्त्व उतना महत्त्वपूर्ण नहीं है जितना दो अस्मिताओं में एकत्व पैदा करने और उनके अन्दर विस्तार तलाश करने की भावना। परन्तु, अन्त में उसकी पराजय हृदयविदारक है। अब्दुल्लाह हुसैन का यह बहुचर्चित उपन्यास पहली बार पाकिस्तान में 1963 में छपा था। 1964 में इसे ‘आदम जी पुरस्कार’ प्राप्त हुआ। (https://rajkamalprakashan.com/udas-naslein.html) | ||
650 | _aHindi novel | ||
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999 |
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