000 | 03116nam a22001937a 4500 | ||
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005 | 20250429132017.0 | ||
008 | 250429b |||||||| |||| 00| 0 eng d | ||
020 | _a9788171789993 | ||
082 |
_a891.433 _bSAH |
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100 |
_aSahni, Bhisham _923170 |
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245 | _aBasanti | ||
250 | _a7th | ||
260 |
_bRajkamal Prakashan _aNew Delhi _c2021 |
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300 | _a183 p. | ||
365 |
_aINR _b395.00 |
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520 | _a‘झरोखे’, ‘कड़ियाँ’ और ‘तमस’ जैसे तीन विभिन्न आयामी उपन्यासों के बाद ‘बसन्ती’ का आना भीष्म साहनी के निर्बंध कथाकार की एक और सृजनात्मक उपलब्धि है। इस उपन्यास में एक ऐसी लड़की का चित्रण है जो मेहनत-मज़दूरी करने के लिए महानगर में आए ग्रामीण परिवार की कठिनाइयों के साथ-साथ बड़ी होती है; और निरन्तर ‘बड़ी’ होती जाती है। दिल्ली जैसे महानगर में नए-नए सेक्टर और कॉलोनियाँ उठानेवालों की आए दिन टूटती झुग्गी-बस्तियों में टूटते ग़रीब लोगों, रिश्ते-नातों, सपनों और घरौंदों के बीच मात्र बसन्ती ही है जो साबुत नज़र आती है। वह अपने परिवार, परिवेश और परम्परागत नैतिकता से विद्रोह करती है। यह विद्रोह उसे दैहिक और मानसिक शोषण तक ले जाता है, पर उसकी निजता को कोई हादसा तोड़ नहीं पाता। प्रेमिका और ‘पत्नी’ के रूप में कठिन-से-कठिन हालात को ‘तो क्या बीबी जी’ कहकर उड़ाने और खिलखिलाने में ही जैसे बसन्ती की सार्थकता है। दूसरे शब्दों में वह एक जीती-जागती जिजीविषा है। यह उपन्यास महानगरीय जीवन की खोखली चमक-दमक और ठोस अँधेरी खाइयों के बीच भटकती ‘बसन्ती’ जैसी एक पूरी पीढ़ी का शायद पहली बार प्रभावी चरित्रांकन प्रस्तुत करता है। (https://rajkamalprakashan.com/basanti.html) | ||
650 | _aHindi novel | ||
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