000 | 03583nam a22002057a 4500 | ||
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100 |
_aPant, Sumitranandan _914741 |
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245 | _aKala aur boodha chand | ||
250 | _a9th | ||
260 |
_bRajkamal Prakashan _aNew Delhi _c2024 |
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300 | _a208 p. | ||
365 |
_aINR _b795.00 |
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520 | _a‘कला और बूढ़ा चाँद’ सुविख्यात कवि सुमित्रानंदन पंत की ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’ प्राप्त काव्यकृति है। इसमें उनकी सन् 1958 में लिखी गई कविताएँ हैं। शैली और विषयवस्तु दोनों ही दृष्टियों में कवि की परवर्ती रचनाओं में इनका विशिष्ट स्थान है। अरविन्द-दर्शन और भारतीय मनोविज्ञान के जो प्रभाव उनकी रचनाओं में कुछ समय से दृष्टिगोचर हो रहे थे, उनका पूर्ण परिपाक प्रस्तुत संग्रह में हुआ है। कवि ने उन तमाम प्रभावों को आत्मसात् कर जिस अतीन्द्रिय भावमंडल का आख्यान यहाँ किया है, वह सर्वथा उसका अपना है, आत्मानुभूत है। चेतन-अवचेतन के स्तरों का भेदन करते हुए अतिचेतन का अवलोकन इन कविताओं की विषयवस्तु है, जिसे कवि ने दार्शनिक और तात्त्विक प्रतीकों के माध्यम से अभिव्यक्त करने का प्रयत्न किया है। मुक्त छंद का प्रयोग पंत जी बहुत प्रारम्भ से ही करते रहे हैं, किन्तु छंद-भंग की वास्तविक स्थिति ‘वाणी’ से प्रारम्भ हुई और उसका पूर्ण विकास ‘कला और बूढ़ा चाँद’ में हुआ है। इन कविताओं में कवि ‘छंदों की पायलें उतार’ देता है, शब्दों को तोड़कर उनमें नई अर्थवत्ता का संचार करता है और इस प्रकार अपनी अभिव्यक्ति के उपकरणों को उसने इतना समर्थ बना लिया है कि उनके द्वारा ‘अविगत गति’ का प्रकाशन किया जा सके। वस्तुतः पंत जी के चेतनाशील काव्य के अध्येताओं के लिए यह एक अपरिहार्य कृति है। (https://rajkamalprakashan.com/kala-aur-boodha-chand.html) | ||
650 | _aHindi poetry | ||
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