000 | 01745nam a22002057a 4500 | ||
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005 | 20250415123543.0 | ||
008 | 250415b |||||||| |||| 00| 0 eng d | ||
020 | _a9788126705092 | ||
082 |
_a891.433 _bTRI |
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100 |
_aTripathi, Suryakant 'Nirala' _923078 |
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245 | _aParimal | ||
250 | _a13th | ||
260 |
_bRajkamal Prakashan _aNew Delhi _c2024 |
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300 | _a205 p. | ||
365 |
_aINR _b595.00 |
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520 | _aमहाकवि ‘निराला’ की युगान्तरकारी कविताओं का अति विशिष्ट और सुविख्यात संग्रह है—‘परिमल’। इसी में है ‘तुम और मैं’, ‘तरंगों के प्रति’, ‘ध्वनि’, ‘विधवा’, ‘भिक्षुक’, ‘संध्या-सुन्दरी’, ‘जूही की कली’, ‘बादल-राग’, ‘जागो फिर एक बार’—जैसी श्रेष्ठ कविताएँ, जो समय के वृक्ष पर अपनी अमिट लकीर खींच चुकी हैं। ‘परिमल’ में छाया-युग और प्रगति-युग अपनी सीमाएँ भूलकर मानो परस्पर एकाकार हो गए हैं। इसमें दो-दो काव्य-युगों की गंगा-जमुनी छटा है, दो-दो भावधाराओं का सहजमुक्त विलास है। (https://rajkamalprakashan.com/parimal.html) | ||
650 | _aHindi poetry | ||
650 | _aHindi poem | ||
942 |
_cBK _2ddc |
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999 |
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