000 | 02383nam a22002057a 4500 | ||
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005 | 20250415101751.0 | ||
008 | 250415b |||||||| |||| 00| 0 eng d | ||
020 | _a9788180314155 | ||
082 |
_a891.434 _bSIN |
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100 |
_aSingh, Ramdhari 'Dinkar' _923093 |
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245 | _aMitti ki oar | ||
250 | _a3rd | ||
260 |
_bLokbharti Prakashan _aNew Delhi _c2024 |
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300 | _a167 p. | ||
365 |
_aINR _b595.00 |
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520 | _aप्रस्तुत निबन्ध-संग्रह में राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ के चौदह आलोचनात्मक निबन्ध संगृहीत हैं जो वर्तमान हिन्दी साहित्य के विषय पर लिखे गए हैं। राष्ट्रकवि ने इस निबन्ध-संग्रह में ‘इतिहास के दृष्टिकोण से’, ‘दृश्य और अदृश्य का सेतु कला में सोद्देश्यता का प्रश्न’, ‘हिन्दी कविता पर अशक्तता का दोष’, ‘वर्तमान कविता की प्रेरक शक्तियाँ’, ‘समकालीन सत्य से कविता का वियोग’, ‘हिन्दी कविता और छन्द’, ‘प्रगतिवाद’, ‘समकालीनता की व्याख्या’, ‘काव्य समीक्षा का दिशा-निर्देश’, ‘साहित्य और राजनीति’, ‘खड़ी बोली का प्रतिनिधि कवि’, ‘बलिशाला ही हो मधुशाला’, ‘कवि श्री सियारामशरण गुप्त’, ‘तुम घर कब आओगे कवि’ इत्यादि विचारोत्तेजक निबन्ध संगृहीत हैं। आशा है नए कलेवर में यह संग्रह पाठकों को अवश्य पसन्द आएगा। (https://rajkamalprakashan.com/mitti-ki-oar.html) | ||
650 | _aLiterary criticism | ||
650 |
_aCriticism--Hindi _923097 |
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942 |
_cBK _2ddc |
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999 |
_c9274 _d9274 |