000 | 02404nam a22001937a 4500 | ||
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005 | 20250429162241.0 | ||
008 | 250429b |||||||| |||| 00| 0 eng d | ||
020 | _a9789360862381 | ||
082 |
_a891.431 _bVAL |
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100 |
_aValmiki, Omprakash _98637 |
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245 | _aPratinidhi Kavitayein | ||
260 |
_bRajkamal Prakashan _aNew Delhi _c2024 |
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300 | _a149 p. | ||
365 |
_aINR _b150.00 |
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520 | _aओमप्रकाश वाल्मीकि ने कविता, कहानी और आत्मकथा के साथ आलोचना भी लिखी है। लेकिन मूल रूप से वे कवि ही हैं। उनके रचनाकार व्यक्तित्व को अभिव्यक्ति सबसे पहले कविता में ही मिली। वे मानते थे कि दलित कविता में जो नकार है वह अतीत से चली आ रही मान्यताओं से है, वर्तमान के छद्म से है, लेकिन उसका मुख्य उद्देश्य जीवन में घृणा के स्थान पर प्रेम, समता और बन्धुता का संचार करना ही है। उनकी प्रतिनिधि कविताओं के इस संकलन में शामिल कविताएँ भी यही सिद्ध करती हैं। वे सवाल उठाते हैं, दलितों के यथार्थ को सामने रखते हैं, लेकिन प्रतिशोध की भावना से नहीं, न्याय की चेतना से प्रेरित होकर। ये कविताएँ एकदम सीधी और सरल शब्दावली में ऐसे कितने ही प्रश्न उठाती हैं जिनके सामने सवर्ण हिन्दू समाज को अपनी तमाम ताकत के बावजूद मौन रह जाना पड़ता है। (https://rajkamalprakashan.com/pratinidhi-kavitayen-om-prakash-valmiki.html) | ||
650 | _aHindi poetry | ||
650 | _aHindi poems | ||
942 |
_cBK _2ddc |
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999 |
_c9259 _d9259 |