000 | 04443nam a22001937a 4500 | ||
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005 | 20250415124638.0 | ||
008 | 250415b |||||||| |||| 00| 0 eng d | ||
020 | _a9788126720194 | ||
082 |
_a891.433 _bSHU |
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100 |
_aShukla, Vinod Kumar _914586 |
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245 | _aHari ghaas ki chhappar wali jhopadi aur bauna pahad (हरी घास की छप्पर वाली झोपड़ी और बौना पहाड़) | ||
250 | _a4th | ||
260 |
_bRajkamal Prakashan _aNew Delhi _c2023 |
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300 | _a135 p. | ||
365 |
_aINR _b595.00 |
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520 | _aविनोद कुमार शुक्ल ने उपन्यास के क्षेत्र में एक नए मुहावरे का आविष्कार किया है। वे उपन्यास के फ़ार्म की जड़ता को जड़ से उखाड़कर, सजगतापूर्वक नए फ़ार्म और शिल्प का लहलहाता हुआ नया संसार रचते हैं। ‘हरी घास की छप्पर वाली झोपड़ी और बौना पहाड़’ उनका चर्चित उपन्यास है। इसे विनोद जी ने किशोर, बड़ों और बच्चों का उपन्यास माना है। इस उपन्यास में बच्चों की मित्रता के साथ ही अमलताश वाला पेड़ है, हरेवा नाम का पक्षी है, बुलबुल, कोतवाल, शौबीजी, किलकिला, दैयार, दर्जी, मधुमक्खी का छत्ता और छोटा पहाड़ है। इसे फ़ैंटेसी कहें या जादुई यथार्थवाद या फिर हो सकता है कि आलोचकों को विनोद जी की इस भाषा, शैली और कल्पनाशीलता के लिए कोई नया ही नाम गढ़ना पड़े। फ़ंतासी की इस बुनावट में एक ताज़गी और नयापन है। गल्प व कल्प की जुगलबन्दी में गद्य और पद्य की सीमा रेखा मिटती जाती है। सच तो यह है कि विनोद कुमार शुक्ल के कल्पना-जगत में भी वास्तविक संसार ऐसा है जो जीवन्त और रचनात्मकता के आनन्द से भरा-पूरा है। उपन्यास में बच्चों की सपनीली दुनिया जैसी सुन्दर बातें हैं। भाषा की चमक के साथ भाषा का संगीत भी कथा को मोहक बनाता है। भाषा का आन्तरिक गठन कथ्य के साथ ही वर्तमान के बोध को भी जीवन्त बनाता है। हमारी और बच्चों की भागती-दौड़ती ज़िन्दगी में मीडिया की मायावी संस्कृति, सबको बाज़ार या ग्लोबल मंडी में जकड़ लेना चाहती है, इन्टरनेट, चिटचेट के साथ उत्तेजनामूलक समाचारों के बीच परम्परा और संस्कृति में मिली दादी-नानी की कहानियों से बच्चे दूर होते जा रहे हैं। ऐसे जटिल समय में भी प्रकृति और परम्परा से सम्पृक्त ‘हरी घास की छप्पर वाली झोपड़ी’ उपन्यास की यह नई संरचना अनूठी है। (https://rajkamalprakashan.com/hari-ghaas-ki-chhappar-wali-jhopadi-aur-bauna-pahad.html) | ||
650 | _aHindi novel | ||
942 |
_cBK _2ddc |
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999 |
_c9254 _d9254 |