000 | 01998nam a22001937a 4500 | ||
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020 | _a9789348157652 | ||
082 |
_a891.433 _bCHO |
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100 |
_aChoubey, Gautam _923101 |
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245 | _aChakka jaam | ||
250 | _a2nd | ||
260 |
_bRadhakrishna Prakashan _aNew Delhi _c2025 |
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300 | _a221 p. | ||
365 |
_aINR _b350.00 |
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520 | _a‘चक्का जाम’ की क़िस्सागोई बहा ले जाती है। देवानन्द दूबे की इस दुनिया में बंगाली माई का चमत्कार भी है और आज़ाद भारत में बचे एंग्लो-इंडियन समुदाय की त्रासदी भी; हवा में उड़ते संन्यासी भी हैं और छात्र-आन्दोलन को संरक्षण देती गृहिणियाँ भी। यह उपन्यास एक बड़े देश की बड़ी घटनाओं में उलझे इनसान के छोटे सपनों की कहानी है। यहाँ व्यक्तिगत आदर्श पारिवारिक, ऐतिहासिक और राजनैतिक आदर्शों की छाया से दूर, खुले आकाश में आज़ाद खिलने को बेचैन है। यह मासूम बेचैनी इस उपन्यास में कुछ इस तरह उभरती है कि पात्र, घटनाएँ और उनकी बोली-बानी पाठकों के दिल-दिमाग में हमेशा के लिए दर्ज हो जाती हैं। (https://rajkamalprakashan.com/chakka-jaam.html) | ||
650 | _aHindi novel | ||
942 |
_cBK _2ddc |
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999 |
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