000 | 02177nam a22001937a 4500 | ||
---|---|---|---|
005 | 20240328134417.0 | ||
008 | 240223b |||||||| |||| 00| 0 eng d | ||
020 | _a9789355184979 | ||
082 |
_a891.433 _bPRI |
||
100 |
_aPritam, Amrita _914793 |
||
245 | _aKore kagaz | ||
260 |
_bVani Prakashan _aNew Delhi _c2022 |
||
300 | _a95 p. | ||
365 |
_aINR _b300.00 |
||
520 | _aकोरे काग़ज़ - ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित अमृता प्रीतम का महत्त्वपूर्ण लघु उपन्यास है कोरे काग़ज़। नाम ज़रूर है कोरे काग़ज़, मगर एक युवा मन की कितनी कातरता, कितनी बेचैनी इसमें उभरकर आयी है, इसका अनुमान आप उपन्यास प्रारम्भ करते ही लगा लेंगे। चौबीस वर्षीय पंकज को जब यह पता चलता है कि उसकी माँ, उसकी माँ नहीं थी, तब अपनी असली माँ, अपने असली बाप को जानने की तड़प उसे दीवानगी की हदों तक ले जाती है। उसकी अपनी पहचान जैसे ख़ुद उसके लिए अजनबी बन जाती है। कुँवारी माँ का नाजायज़ बेटा—उसकी और उसके बाप के बीच एक ही रिश्ता तो क़ायम रह सकता था—कोरे काग़ज़ का रिश्ता। प्रस्तुत है, अमृता प्रीतम के इस मनोहारी उपन्यास कोरे काग़ज़ का नया संस्करण। (https://vaniprakashan.com/home/product_view/6274/Kore-Kagaz) | ||
650 |
_aHindi literature _914826 |
||
650 |
_aHindi novel _914892 |
||
942 |
_cBK _2ddc |
||
999 |
_c6635 _d6635 |