000 | 03026nam a22001937a 4500 | ||
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005 | 20240326183546.0 | ||
008 | 240223b |||||||| |||| 00| 0 eng d | ||
020 | _a9789355215727 | ||
082 |
_a891.433 _bSHU |
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100 |
_aShukla, Manoj Muntashir _914785 |
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245 | _aJo meri nas nas mein hai | ||
260 |
_bPrabhat Prakashan _aNew Delhi _c2023 |
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300 | _a271 p. | ||
365 |
_aINR _b400.00 |
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520 | _a1999 मुलुंड, मुंबई का एक इलाका; रात के लगभग 11 बजे कासमय ! मेन रोड से लगी हुई कुछ खोलियाँ;उनमें से एक का दरवाजा तेज आवाज के साथखुलता है और VIP का एक फटा-पुराना बैगबाहर फेंक दिया जाता है । साथ ही एक महिलाके चीखने की आवाज आती है, ' जेब में दोकौड़ी नहीं और बातें बड़ी -बड़ी, कहीं और जाके भीख माँग।' हवा में फेंका हुआ बैग खुलजाता है। 'एक डायरी के कुछ पन्ने, एक फाइल मेंरखे हुए कुछ ए-4 साइज के कागज फड़फड़ातेहुए सड़क पर चारों ओर बिखर जाते हैं । 23 साल का एक लड़का खोली के उसीखुले हुए दरवाजे से दौड़ता हुआ बाहर आता हैऔर बदहवास हवा में उड़ते हुए पन्ने समेटनेलगता है । आधी रात होने को है, लेकिन सड़कपर ट्रैफिक अभी कम नहीं हुआ। आती-जातीगाड़ियों से बेपरवाह वह लड़का रोता जा रहा हैऔर एक-एक पन्ने के पीछे भागता जा रहा है।ब्रेक मारती हुई गाड़ियों से मुँह निकालकर लोगगालियाँ बकते हैं, ' अबे, मरेगा कया ।' पता नहींयह तमाशा कितनी देर चला, लेकिन लड़के नेसारे पन्ने समेट लिये और हवा ने सारे आँसूसुखा दिए । समेटे हुए वही पन्ने और सूखे हुएआँसू किताब बनकर आज आपके हाथों मेंहैं--सँभाल लीजिए । (https://www.prabhatbooks.com/jo-meri-nas-nas-mein-hai.htm) | ||
650 |
_aHindi literature _914826 |
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650 |
_aHindi fiction _914814 |
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942 |
_cBK _2ddc |
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999 |
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