000 | 02492nam a22001937a 4500 | ||
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005 | 20240311142659.0 | ||
008 | 240222b |||||||| |||| 00| 0 eng d | ||
020 | _a9788126715855 | ||
082 |
_a891.4336 _bVER |
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100 |
_aVerma, Bhagwaticharan _914662 |
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245 | _aChitralekha | ||
260 |
_bRajkamal Prakashan _aNew Deihi _c2023 |
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300 | _a199 p. | ||
365 |
_aINR _b299.00 |
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520 | _aचित्रलेखा’ न केवल भगवतीचरण वर्मा को एक उपन्यासकार के रूप में प्रतिष्ठा दिलानेवाला पहला उपन्यास है, बल्कि हिन्दी के उन विरले उपन्यासों में भी गणनीय है, जिनकी लोकप्रियता बराबर काल की सीमा को लाँघती रही है। ‘चित्रलेखा’ की कथा पाप और पुण्य की समस्या पर आधारित है। पाप क्या है? उसका निवास कहाँ है? —इन प्रश्नों का उत्तर खोजने के लिए महाप्रभु रत्नाम्बर के दो शिष्य, श्वेतांक और विशालदेव, क्रमशः सामन्त बीजगुप्त और योगी कुमारगिरि की शरण में जाते हैं। इनके साथ रहते हुए श्वेतांक और विशालदेव नितान्त भिन्न जीवनानुभवों से गुज़रते हैं। और उनके निष्कर्षों पर महाप्रभु रत्नाम्बर की टिप्पणी है, "संसार में पाप कुछ भी नहीं है, यह केवल मनुष्य के दृष्टिकोण की विषमता का दूसरा नाम है। हम न पाप करते हैं और न पुण्य करते हैं, हम केवल वह करते हैं जो हमें करना पड़ता है। (https://rajkamalprakashan.com/chitralekha.html) | ||
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_aNovel _913491 |
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