000 | 02180nam a22001817a 4500 | ||
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005 | 20240228181720.0 | ||
008 | 240222b |||||||| |||| 00| 0 eng d | ||
020 | _a9788195948444 | ||
082 |
_a891 _bJAI |
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100 |
_aJain, Malay _914732 |
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245 | _aHalak ka daroga | ||
260 |
_bRadhakrishna Prakashan _aNew Delhi _c2023 |
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300 | _a183 p. | ||
365 |
_aINR _b250.0 |
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520 | _a.मलय के लिए न तो सिनेमा के पात्र अछूते हैं न काव्य शास्त्र की अभिव्यक्तियाँ। सब्लाइम को रेडिकुलस बनाने के अपने अद्वितीय हुनर से वह जन्नत को दोज़ख़ से इस तरह मिलाते हैं कि पाठक को सैर के वास्ते थोड़ी नहीं, बहुत सारी फ़िजां हासिल हो जाती है। —कान्ति कुमार जैन कुछ लोग शस्त्र से चिकित्सा करते हैं तो कुछ शब्द से, मलय जैन को साहित्य का शल्य चिकित्सक कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। वे अपने शब्दों के माध्यम से मनुष्य के चित्त में व्याप्त विकारों को समझकर बहुत कुशलता के साथ उनका निदान करते हैं। उनकी रचनाएँ मात्र सरस ही नहीं है बल्कि वे पाठक को सार्थक जीवन के लिए प्रेरित भी करती हैं। बेहद मारक, अदभुत कथाशिल्प है उनका। —आशुतोष राणा (https://rajkamalprakashan.com/halak-ka-daroga.html) | ||
650 |
_aSatire _916451 |
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942 |
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