000 | 02294nam a22002057a 4500 | ||
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999 |
_c3477 _d3477 |
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005 | 20220916161300.0 | ||
008 | 220916b ||||| |||| 00| 0 eng d | ||
020 | _a9788126718696 | ||
082 |
_a891.433 _bSHR |
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100 |
_aShree, Geetanjali _98641 |
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245 | _aPratinidhi kahaniyan | ||
250 | _a4th | ||
260 |
_bRajkamal Prakashan _aNew Delhi _c2022 |
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300 | _a164 p. | ||
365 |
_aINR _b99.00 |
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520 | _aयह गीतांजलि श्री की कहानियों का प्रतिनिधि संचयन है। गीतांजलि की लगभग हर कहानी अपनी टोन की कहानी है और विचलन उनके यहाँ गभग नहीं के बराबर है और यह बात अपने आपमें आश्चर्यजनक है क्योंकि बड़े-से-बड़े लेखक कई बार बाहरी दबावों और वक़्ती ज़रूरतों के चलते अपनी मूल टोन से विचिलत हुए हैं। यह अच्छी बात है कि गीतांजलि श्री ने अपनी लगभग हर कहानी में अपनी सिग्नेचर ट्यून को बरकरार रखा है। लेकिन सवाल यह है कि गीतांजलि कीकहानियों की यह मूल टोन आखिर है क्या? एक अजीब तरह का फक्कड़पन, एक अजीब तरह की दार्शनिकता, एक अजीब तरह की भाषा और एक अजीब तरह की रवानी। लेकिन ये सारी अजीबियतें ही उनके कथाकार को एक व्यक्तित्व प्रदान करती हैं। यहाँ यह कहना ज़रूरी है कि यह सब परम्परा से हटकर है और परम्परा में समाहित भी। | ||
650 |
_aHindi-literarture _98651 |
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650 |
_aHindi Stories _98410 |
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942 |
_2ddc _cBK |