000 | 01932nam a22001697a 4500 | ||
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999 |
_c3456 _d3456 |
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005 | 20221018144415.0 | ||
008 | 220912b ||||| |||| 00| 0 eng d | ||
020 | _a9788126706884 | ||
082 |
_a891.433 _bVER |
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100 |
_aVerma, Bhagwaticharan _98492 |
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245 | _aSabahin nachavat Ram Gosain | ||
260 |
_bRajkamal Prakashan _aNew Delhi _c2020 |
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300 | _a226 p. | ||
365 |
_aINR _b299.00 |
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520 | _aभगवती बाबू ने अपने उपन्यासों में भारतीय इतिहास के एक लम्बे कालखंड का यथार्थवादी ढंग से अंकन किया है। स्वतंत्रता-पूर्व और स्वातंत्र्योत्तर दौर की विभिन्न सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक परिघटनाओं को उन्होंने अपनी विशिष्ट शैली में अंकित किया है। ‘सबहिं नचावत राम गोसाईं’ की विषयवस्तु आज़ादी के बाद के भारत में क़स्बाई मध्यवर्ग की महत्त्वाकांक्षाओं के विस्तार और उनके प्रतिफलन पर रोचक कथासूत्रों के माध्यम से प्रकाश डालती है। राधेश्याम, नाहर सिंह, जबर सिंह, राम समुझ आदि चरित्रों के माध्यम से यह उपन्यास आज़ाद भारत के तेज़ी से बदलते राजनीतिक-सामाजिक चेहरे को उजागर करता है। | ||
942 |
_2ddc _cBK |