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020 _a9789387462250
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_bSHR
100 _aShree, Geetanjali
_98641
245 _aRet Samadhi 
260 _bRajkamal Prakashan
_aNew Delhi
_c2022
300 _a376 p.
365 _aINR
_b450.00
520 _aअस्सी की होने चली दादी ने विधवा होकर परिवार से पीठ कर खटिया पकड़ ली। परिवार उसे वापस अपने बीच खींचने में लगा। प्रेम, वैर, आपसी नोकझोंक में खदबदाता संयुक्त परिवार। दादी बजि़द कि अब नहीं उठूँगी। फिर इन्हीं शब्दों की ध्वनि बदलकर हो जाती है अब तो नई ही उठूँगी। दादी उठती है। बिलकुल नई। नया बचपन, नई जवानी, सामाजिक वर्जनाओं-निषेधों से मुक्त, नए रिश्तों और नए तेवरों में पूर्ण स्वच्छन्द।
650 _aJoint families
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650 _aInterpersonal relations
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