Cinema: ek duniya samanantar (सिनेमा : एक दुनिया समानांतर)
- Kolkata Pratishruti Prakashan 2020
- 197 p.
व्यक्ति व समाज के पहलुओं पर विचार-विमर्श का एक ज़रिया फिल्में हो सकती हैं। फिल्मों से गुज़रते हुए ऐसा ही महसूस होता है। फिल्मों पर लिखते हुए आदमी विभिन्न समयकाल से रूबरू हो जाता है। कहानी व पात्रों से करीबी साक्षात्कार होता है। समस्या से अवगत होता है। समाधान की राहें समझ में आती हैं। एक नई दुनिया से साक्षात्कार होता है। उलझनों में सुलझन की राह दिखाई देती है। अनुभव की एक दुनिया निर्मित होती है। एक ओपन प्लेटफॉर्म का हिस्सा होकर मुझे यह अनुभव बहुत आकर्षित करता है।
सिनेमा की अपील पूरी तरह से सार्वभौमिक है। सिनेमा आसानी से नई तकनीक आत्मसात कर लेता है।