TY - BOOK AU - Tripathi, Anoop Mani TI - Sanpon ki sabha SN - 9789348229281 U1 - 891.437 PY - 2024/// CY - New Delhi PB - Lokbharti Prakashan KW - Hindi satire and humor N2 - अनूप मणि त्रिपाठी की व्यंग्य रचनाओं को पढ़ने के पहले मुझे लगता था कि हर व्यंग्य का स्वाद एक जैसा होता है। उनके इस संग्रह को आद्योपांत पढ़ने के बाद समझ में आया कि खुद उनकी हर रचना का स्वाद अलग है। राजनीति के विद्रूप, निष्ठुरता और नंगई को जिस तरह गले से पकड़कर वे अनावृत करते और उस पर चोट करते हैं वह अद्वितीय है। उनका व्यंग्य औरों से इस मामले में अलग और मूल्यवान है कि वह पाठक की समझ पर लानत ही नहीं भेजता, उसे समझदार भी बनाता है। जनता का ध्यान कैसे असली और ज्वलन्त मुद्दों से भटकाकर नकली और काल्पनिक मुद्दों में उलझाया जाता है इसके एक से एक नमूने आपको कदम कदम पर मिलते हैं। 'बहती लाशों की कहानियाँ' पढ़कर लगता है व्यंग्य नहीं पढ़ रहे, कोई हॉरर फिल्म देख रहे हैं। भाषा की विदग्धता का उदाहरण देने से इसलिए बच रहा हूँ कि आख़िर कितने उदाहरण देंगे। फिर भी बानगी के लिए एक उदाहरण दे रहा हूँ। शीर्षक है—‘साँपों की सभा’। ‘वह धारा प्रवाह बोलता रहा, ‘बस हमें सपने और भय दोनों साथ-साथ दिखाने होंगे! अच्छे-अच्छे शब्दों के चयन पर ध्यान केन्द्रित करना होगा!’ उसने चूहे की डेड बॉडी पर एक नजर मारी। फिर बोला, ‘देखिए! कैसे हमारे रंग में यह रँगने के लिए तैयार हो गया!’ वह आगे बोला, ‘जहर भरिए, खूब भरिए, मगर उपदेश की शक्ल में...आप देखेंगे कि उपदेश स्वतः उन्माद में बदलता जाएगा...बस फैलकर हर जगह हमें अपना काम लगातार करते रहना है। क्या समझे!’ एक बूढ़ा साँप जोश में बोला, ‘समझ गए! हमें लोकतंत्र को लोकतांत्रिक ढंग से खत्म करना है...’ दरअसल इन रचनाओं की शैलीगत व्याप्ति इतनी अधिक है कि इन्हें केवल व्यंग्य के खाँचे में रखना इनकी मारक क्षमता को कम करके आँकना होगा। यह कोई और विधा है जिसकी तिलमिलाहट अन्दर तक कँपकँपी पैदा कर देती है और जिसे उपयुक्त नाम दिया जाना अभी बाकी है। हाँ, जब तक इसका उपयुक्त नामकरण न हो जाए तब तक व्यंग्य से काम चलाना पड़ेगा। इन रचनाओं से गुजरने के बाद मेरा मानना है कि अनूप मणि त्रिपाठी आज की मारक व्यंग्य विधा के सर्वाधिक सशक्त हस्ताक्षर हैं। —शिवमूर्ति (https://rajkamalprakashan.com/sanpon-ki-sabha.html) ER -