Main hun Kolkata ka foreign return bhikhari
- 2nd
- New Delhi Lokbharti Prakashan 2024
- 248 p.
आत्मकथात्मक शैली में लिखे गये इस उपन्यास में एक ऐसे व्यक्ति के जीवनानुभव का वर्णन है जिसने होश सम्भालते ही खुद को सियालदह स्टेशन परिसर में भिखारी के रूप में पाया।
एक उस्ताद से पाकिटमारी, उठाईगीरी आदि सीखकर इस कला को आजमाने के प्रयास में वह पहले दिन ही पकड़ा गया। उसे मारने-पीटने के बजाय उस दयालु सज्जन ने उसे कुछ दिनों तक परखने के बाद अपने घरेलू नौकर के रूप में रख लिया। अपने आश्रय दाता ‘दाआबू’ के यहाँ उसने रसोई का काम सीखा।
युवा होते-होते वह अच्छा घरेलू नौकर और रसोइया बन गया था। थोड़ा-बहुत लिखना-पढ़ना भी सीख गया था। एक दिन दाआबू उसे लन्दन ले गये। दाआबू ने उसे डायरी लिखने को कहा, बोले कि वह रोज के अनुभवों को अपनी भाषा में लिखना शुरू करे। उनके कहने पर ही उसने अपने अनुभवों और स्मृतियों को सँजोना शुरू किया। इस तरह दुनिया के सामने आया एक अकल्पनीय ज़िन्दगी का कभी न भूलने वाला यह वृत्तान्त!
दाआबू से सम्पर्क होने के बाद की सारी घटनाएँ हैरतअंगेज और उसकी उन्नति में सहायक रहीं। उन्होंने उसके लिए एक शिक्षक का भी प्रबन्ध कर दिया जिसके घर जाकर पढ़ना-लिखना सीखना पड़ता। सीखना यानी सब-कुछ सीखना—बैठने का ढंग, चलने का ढंग, मुस्कराकर बातचीत का ढंग। ...दरअसल वह शिक्षक जानवर को आदमी बनाने में था यानी वह धीरे-धीरे आदमी बनने लगा था...।