Vishwas, Kumar

Mein jo hoon,'Jon Elia' hoon - New Delhi Vani Prakashan 2023 - 155 p.

मैं जो हूँ जॉन एलिया हूँ जनाब मेरा बेहद लिहा ​ज़ ​ कीजिएगा। ​कहना ​ ये जो जॉन एलिया के कहने की खुद्दारी है कि मैं एक अलग फ्रेम का कवि हूँ, यह परम्परागत शायरी में बहुत कम ही देखने को मिलती है। जैसे ​-​ साल हा साल और इक लम्हा, कोई भी तो न इनमें बल आया ​ख़ुद​ ही इक दर पे मैंने दस्तक दी, ख़ुद ही लड़का सा मैं निकल आया जॉन से पहले कहन का ये तरीका नहीं देखा गया था। जॉन एक ​खूबसूरत ​ जंगल हैं, जिसमें झरबेरियाँ हैं, काँटे हैं, उगती हुई बेतरतीब झाड़ियाँ हैं, खिलते हुए बनफूल हैं, बड़े-बड़े देवदारु हैं, शीशम हैं, चारों तर​फ़ ​ कूदते हुए हिरन हैं, कहीं शेर भी हैं, मगरमच्छ भी हैं। उनकी तुलना में आप यह कह सकते हैं कि बा​क़ी ​ सब शायर एक उपवन हैं, जिनमें सलीके से बनी हुई और करीने से सजी हुई क्यारियाँ हैं इसलिए जॉन की शायरी में प्रवेश करना ख़तरनाक भी है। लेकिन अगर आप थोड़े से एडवेंचरस हैं और आप फ्रेम से बाहर आ कर सब कुछ करना चाहते हैं तो जॉन की दुनिया आपके लिए है।

(https://vaniprakashan.com/home/product_view/1693/Mein-Jo-Hoon-Jon-Elia-Hoon)

9789350728833


Hindi ghazal
Hindi shayari
Hindi poem

891.43 / VIS