Had behad
- New Delhi Rajkamal Prakashan 2022
- 231 p.
‘हद-बेहद’ बहुत ख़ूबसूरत प्रौढ़ प्रेम-उपन्यास है बल्कि इसे प्रेम का दर्शन भी कह सकते हैं। संस्कार और इन्दिरा की यह कहानी प्रेम में कुछ पाने या खोने की कथा नहीं है। यहाँ प्रेम में न देह का नकार है न उसका विकृत अट्टहास। प्रेम यहाँ धीरे-धीरे आकार लेता है और मन को मन से मिलाकर एक सामाजिक दायित्व बन जाता है।
संस्कार दलित समाज से आता है और इन्दिरा सवर्ण समाज से लेकिन दोनों का अनुराग ऐसा है कि जाति आड़े नहीं आती। दोनों साथ पढ़ते हैं। स्कूल में एक लड़का संस्कार को उसकी जाति के बहाने अपमानित करता है पर इन्दिरा संस्कार के साथ खड़ी रहती है। अपने संस्कारों के कारण संस्कार प्रेम में देह को महत्त्व नहीं देता लेकिन इन्दिरा की ऐसी कोई वर्जना नहीं है, उसके लिए निष्ठा और समर्पण ज़्यादा महत्त्वपूर्ण हैं। संस्कार शर्मीला है। इन्दिरा दबंग। वह उसके लिए पहेली की तरह है। ऐसा नहीं कि इससे पहले संस्कार के जीवन में लड़कियाँ नहीं आईं। दो लड़कियों ने उसके सहारे अपने बन्धनों को तोड़ने का प्रयास किया और संस्कार को भी प्रेरित किया लेकिन पिता के ट्रांसफर के बाद संस्कार के रिश्ते टूट गए। तीसरा रिश्ता एक ज़मींदार की बेटी का था जो प्रेम को सिर्फ़ देह की भूख समझती थी। संस्कार ने उससे अपमान पाया। यह गाँठ उसे इन्दिरा के साथ भी सहज नहीं होने देती। एक रात कमरे में साथ पढ़ते हुए इन्दिरा संस्कार की देह से जुड़ने का प्रयास करती है। संस्कार असहज हो जाता है। उसके पिता इस क्षण को देख लेते हैं क्या होता है उसके बाद? लेखक ने बहुत रोचक ढंग से यह सरस कथा बुनी है। इसे पढ़ना एक सुखद और नवीन अनुभूति है।
दरअसल, पूरा उपन्यास प्रेम में स्त्री-पुरुष मुक्ति का दर्शन है।