TY - BOOK AU - Sharma, Bipin Kumar TI - Din dhale ki dhoop SN - 9789391925079 U1 - 891.433 PY - 2021/// CY - New Delhi PB - Antika Prakashan KW - Hindi Story N2 - विपिन हमारे समय की विडंबनाओं के सजग पर्यवेक्षक और भोक्ता हैं। उनकी कहानियों को पढऩा अपने समय की तल्ख सचाइयों से रू-ब-रू होना है। एक तरफ नव-उदारवादी हमले के शिकार मनुष्य का लहूलुहान अंतर-बाह्य व्यक्तित्व उनकी कहानियों में उभरा हुआ है, तो दूसरी तरफ परंपरागत समाज की सूक्ष्म, और कई बार स्थूल, हिंसा के भी विचलित कर देने वाले चित्र हैं। इस कहानीकार के तसव्वुर में कहानियाँ ठोस घटनाक्रम के रूप में उभरती हैं, जहाँ प्रस्तुति के मुकाबले कथा-स्थितियाँ, चरित्र और उनके बीच से आकार लेते मुद्दे ज़्यादा अहमियत रखते हैं। वे व्यवस्था की मानवविरोधी चालों को बेनकाब कर रहे हों ('गिलोटीन’) या निगरानी और अनुशासन के नाम पर बच्चे को मनोवैज्ञानिक स्तर पर तबाह कर देने वाले शिक्षाशास्त्र की आलोचना कर रहे हों ('जाग तुझको दूर जाना’), व्यवस्थागत ना-इंसाफी के शिकार बेरोज़गार युवाओं की विडंबना चित्रित कर रहे हों ('शुतुरमुर्ग’) या बिना किसी गलती के सज़ा भुगतने वाली स्त्री की अकथ पीड़ा का एक बच्चे की निगाह से साक्षात्कार करा रहे हों ('दिन ढले की धूप’)— अपने अंदाज़े बयां से पाठक को गिरफ्त में लेने की कोशिश वे नहीं करते, बल्कि समस्या को परत-दर-परत उधेड़ते हुए पाठक को उन पहलुओं की शिनाख्त के लायक बनाते हैं जिनकी ओर उसकी निगाह नहीं गई थी। वे कथा-कथन में ऐसी सादगी और सहजता के साधक हैं जो एक छल-योजना की तरह उनकी हिकमतों को अदृश्य बनाए रखती है। मिसाल के लिए, इस संग्रह की शीर्षक कहानी में बच्चे की निगाह से कहानी की प्रस्तुति को आप किसी युक्ति की तरह महसूस नहीं करते... सादगी की इसी साधना के कारण विपिन को पढ़ते हुए आपको ऐसा लगता है कि आप लेखक को नहीं, सिर्फ उसकी कहानी को पढ़ रहे हैं ER -