Tughlaq
Material type: TextPublication details: Rajkamal Prakashan New Delhi 2023Description: 159 pISBN:- 9788183613767
- 822 GIR
Item type | Current library | Collection | Call number | Copy number | Status | Date due | Barcode | |
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Book | Indian Institute of Management LRC General Stacks | Hindi Book | 822 GIR (Browse shelf(Opens below)) | 1 | Available | 006104 |
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821.214 PAN Dr. Kalam: prerna ki udaan | 821.214 PAR Nithalle ki diary | 821.214 VIV Vyaktitva ka sampoorna vikas | 822 GIR Tughlaq | 822 VIJ Ghasiram Kotwal | 822.33 SHA Bhool bhulaiya | 822.33 SHA Othello |
मोहम्मद तुग़लक चारित्रिक विरोधाभास में जीनेवाला एक ऐसा बादशाह था जिसे इतिहासकारों ने उसकी सनकों के लिए ख़ब्ती करार दिया। जिसने अपनी सनक के कारण राजधानी बदली और ताँबे के सिक्के का मूल्य चाँदी के सिक्के के बराबर कर दिया। लेकिन अपने चारों ओर कट्टर मज़हबी दीवारों से घिरा तुग़लक कुछ और भी था। उसने मज़हब से परे इंसान की तलाश की थी। हिंदू और मुसलमान दोनों उसकी नज़र में एक थे। तत्कालीन मानसिकता ने तुग़लक की इस मान्यता को अस्वीकार कर दिया और यही ‘अस्वीकार’ तुग़लक के सिर पर सनकों का भूत बनकर सवार हो गया। नाटक का कथानक मात्र तुग़लक के गुण-दोषों तक ही सीमित नहीं है। इसमें उस समय की परिस्थितियों और तज्जनित भावनाओं को भी अभिव्यक्त किया गया है, जिनके कारण उस समय के आदमी का चिंतन बौना हो गया था और मज़हब तथा सियासत के टकराव में हरेक केवल अपना उल्लू सीधा करना चाहता है। 3 अप्रैल, 1983, हिंदुस्तान, नयी दिल्ली
(https://rajkamalprakashan.com/tughalaq.html)
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