Rajyog
Material type: TextPublication details: Prabhat Prakashan New Delhi 2023Description: 199 pISBN:- 9789384343040
- 294.5436 VIV
Item type | Current library | Collection | Call number | Copy number | Status | Date due | Barcode | |
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Book | Indian Institute of Management LRC General Stacks | Hindi Book | 294.5436 VIV (Browse shelf(Opens below)) | 1 | Checked out | 02/11/2025 | 006153 |
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294.5211 KOH Ram katha | 294.5211 PAT Sita: Ramayan ka sacharit punarkathan | 294.543 PAT Meri Hanuman chalisa | 294.5436 VIV Rajyog | 294.5550954 KUM Swami Vivekanand ka bharat | 294.592 THA Bhasha Ramcharitmanas | 294.5922 TUL Sunderkand |
राजयोग-विद्या इस सत्य को प्राप्त करने के लिए, मानव के समक्ष यथार्थ, व्यावहारिक और साधनोपयोगी वैज्ञानिक प्रणाली रखने का प्रस्ताव करती है। पहले तो प्रत्येक विद्या के अनुसंधान और साधन की प्रणाली पृथक्-पृथक् है। यदि तुम खगोलशास्त्री होने की इच्छा करो और बैठे-बैठे केवल ‘खगोलशास्त्र खगोलशास्त्र’ कहकर चिल्लाते रहो, तो तुम कभी खगोलशास्त्र के अधिकारी न हो सकोगे। रसायनशास्त्र के संबंध में भी ऐसा ही है; उसमें भी एक निर्दिष्ट प्रणाली का अनुसरण करना होगा; प्रयोगशाला में जाकर विभिन्न द्रव्यादि लेने होंगे, उनको एकत्र करना होगा, उन्हें उचित अनुपात में मिलाना होगा, फिर उनको लेकर उनकी परीक्षा करनी होगी, तब कहीं तुम रसायनविज्ञ हो सकोगे। यदि तुम खगोलशास्त्रज्ञ होना चाहते हो, तो तुम्हें वेधशाला में जाकर दूरबीन की सहायता से तारों और ग्रहों का पर्यवेक्षण करके उनके विषय में आलोचना करनी होगी, तभी तुम खगोलशास्त्रज्ञ हो सकोगे।
(https://www.prabhatbooks.com/rajyog.htm)
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