Khattar kaka
Material type: TextPublication details: Rajkamal Prakashan New Delhi 2022Edition: 20thDescription: 200 pISBN:- 9788126704279
- 891.434 JHA
Item type | Current library | Collection | Call number | Copy number | Status | Date due | Barcode | |
---|---|---|---|---|---|---|---|---|
Book | Indian Institute of Management LRC General Stacks | Hindi Book | 891.434 JHA (Browse shelf(Opens below)) | 1 | Available | 003048 |
Browsing Indian Institute of Management LRC shelves, Shelving location: General Stacks, Collection: Hindi Book Close shelf browser (Hides shelf browser)
891.43372 TRI Neelkanth: parajay ka vish aur Shiv | 891.434 BHA Zindagi 50-50 | 891.434 DIW Ashok ke phool | 891.434 JHA Khattar kaka | 891.434 KOH Abhigyan | 891.434 NAG Manas ka Hans | 891.434 PAR Thithurata huaa gantantra |
खट्टर काका धर्म और इतिहास, पुराण के अस्वस्थ, लोकविरोधी प्रसंगों की दिलचस्प लेकिन कड़ी आलोचना प्रस्तुत करनेवाली, बहुमुखी प्रतिभा के धनी हरिमोहन झा की बहुप्रशंसित, उल्लेखनीय व्यंग्यकृति है-खट्टर काका! आज से लगभग पचास वर्ष पूर्व खट्टर काक मैथिली भाषा में प्रकट हुए। जन्म लेते ही वह प्रसिद्ध हो उठे। मिथिला के घर-घर में उनका नाम चर्चित हो गया। जब उनकी कुछ विनोद-वार्त्ताएँ ‘कहानी’, ‘धर्मयुग’ आदि में छपीं तो हिंदी पाठकों को भी एक नया स्वाद मिला। गुजराती पाठकों ने भी उनकी चाशनी चखी। वह इतने बहुचर्चित और लोकप्रिय हुए कि दूर-दूर से चिट्ठियाँ आने लगीं-‘‘यह खट्टर काका कौन हैं कहाँ रहते हैं, उनकी और-और वार्त्ताएँ कहाँ मिलेंगी?’’ खट्टर काका मस्त जीव हैं। ठंडाई छानते हैं और आनंद-विनोद की वर्षा करते हैं। कबीरदास की तरह खट्टर काका उलटी गंगा बहा देते हैं। उनकी बातें एक-से-ए अनूठी, निराली और चौंकानेवाली होती हैं। जैसे-‘‘ब्रह्मचारी को वेद नहीं पढ़ना चाहिए। सती-सावित्री के उपाख्यान कन्याओं के हाथ नहीं देना चाहिए। पुराण बहू-बेटियों के योग्य नहीं हैं। दुर्गा की कथा स्त्रैणों की रची हुई है। गीता में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को फुसला दिया है। दर्शनशास्त्र की रचना रस्सी देखकर हुई। असली ब्राह्मण विदेश में हैं। मूर्खता के प्रधान कारण हैं पंडितगण! दही-चिउड़-चीनी सांख्य के त्रिगुण हैं। स्वर्ग जाने से धर्म भ्रष्ट हो जाता है...!’’ खट्टर काका हँसी-हँसी में भी जो उलटा-सीधा बोल जाते हैं, उसे प्रमाणित किए बिना नहीं छोड़ते। श्रोता को अपने तर्क-जाल में उलझाकर उसे भूल-भुलैया में डाल देना उनका प्रिय कौतुक है। वह तसवीर का रुख तो यो पलट देते हैं कि सारे परिप्रेक्ष्य ही बदल जाते हैं। रामायण, महाभारत, गीता, वेद, वेदांत, पुराण-सभी उलट जाते हैं। बडे़-बड़े दिग्गज चरित्र बौने-विद्रूप बन जाते हैं। सिद्धान्तवादी सनकी सिद्ध होते हैं, और जीवमुक्त मिट्टी के लोंदे। देवतागण गोबर-गणेश प्रतीत होते हैं। धर्मराज अधर्मराज, और सत्यनारायण असत्यनारायण भासित होते हैं। आदर्शों के चित्र कार्टून जैसे दृष्टिगोचर होते हैं...। वह ऐसा चश्मा लगा देते हैं कि दुनिया ही उलटी नजर आती है। स्वर्ण जयंती के अवसर पर प्रकाशित हिंदी पाठकों के लिए एक अनुपम कृति-खट्टर काका।
There are no comments on this title.