Vatayan
Shivani
Vatayan - New Delhi Rajkamal Prakashan Pvt. Ltd 2013 - 92 p.
'वातायन' कथाकार शिवानी की प्रतिभा का एक अलग आयाम है। दैनिक 'स्वतंत्र भारत' में प्रति सप्ताह प्रकाशित होनेवाले उनके इस स्तम्भ के लिए एक बड़ा पाठक समुदाय प्रतीक्षा किया करता था।
इन आलेखों में प्रवाहित जीवन की छवियाँ आज भी उद्वेलित करती हैं। बिना कोई पारिश्रमिक लिये हड्डी बिठानेवाला, चमचमाती मोटरों में चलनेवाले, महँगे होटलों में डिनर खानेवाले लोग और सड़कों पर एक-एक दाने को तरसते भिखारी—आज भी ये चित्र पुराने नहीं पड़े हैं।
इसके अलावा अनेक पुरानी यादें और खट्टे-मीठे अनुभव भी इन आलेखों में पिरोए गए हैं; और सबसे ध्यानाकर्षक है शिवानी जी की गहरी संवेदना और अभिव्यक्ति पर पकड़ जो उनके देखे हुए को हम तक जस की तस पहुँचा देती है।
शिवानी जी के ‘वातायन’ ने अपने समय में हिन्दी पत्रकारिता में स्तम्भ-लेखन को एक नई ऊँचाई दी थी जिससे हम आज जब पत्रकारिता और मीडिया की भाषा खासतौर पर इकहरी होती जा रही है, बहुत कुछ सीख सकते हैं।
(https://rajkamalprakashan.com/vatayan.html)
9788183614290
Memoirs
891.43 / SHI
Vatayan - New Delhi Rajkamal Prakashan Pvt. Ltd 2013 - 92 p.
'वातायन' कथाकार शिवानी की प्रतिभा का एक अलग आयाम है। दैनिक 'स्वतंत्र भारत' में प्रति सप्ताह प्रकाशित होनेवाले उनके इस स्तम्भ के लिए एक बड़ा पाठक समुदाय प्रतीक्षा किया करता था।
इन आलेखों में प्रवाहित जीवन की छवियाँ आज भी उद्वेलित करती हैं। बिना कोई पारिश्रमिक लिये हड्डी बिठानेवाला, चमचमाती मोटरों में चलनेवाले, महँगे होटलों में डिनर खानेवाले लोग और सड़कों पर एक-एक दाने को तरसते भिखारी—आज भी ये चित्र पुराने नहीं पड़े हैं।
इसके अलावा अनेक पुरानी यादें और खट्टे-मीठे अनुभव भी इन आलेखों में पिरोए गए हैं; और सबसे ध्यानाकर्षक है शिवानी जी की गहरी संवेदना और अभिव्यक्ति पर पकड़ जो उनके देखे हुए को हम तक जस की तस पहुँचा देती है।
शिवानी जी के ‘वातायन’ ने अपने समय में हिन्दी पत्रकारिता में स्तम्भ-लेखन को एक नई ऊँचाई दी थी जिससे हम आज जब पत्रकारिता और मीडिया की भाषा खासतौर पर इकहरी होती जा रही है, बहुत कुछ सीख सकते हैं।
(https://rajkamalprakashan.com/vatayan.html)
9788183614290
Memoirs
891.43 / SHI